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________________ "इस प्रकार के पत्र और आदेश आदि कोन लाता-पहुंचाता है ? यही फूकन महोदय ! यों फूकन एक ठेकेदार हैं, पर हृदय से हमारे साथ हैं । इसीलिए आदेशवाहक का काम करते हैं । अब असल बात कहता हूँ, सुनो!" __ धनपुर ने चुनकर एक लम्बी-सी बीड़ी निकाली और उसे सुलगा लेने के बाद भिभिराम की ओर कनखियों देखता हुआ बोला : "उस दिन रात को वहां पहुंचा तो आइकण दीदी बोलीं, 'मैं डर रही थी तुम आज आओगे या नहीं। ये तो बेबेजिया गये हुए हैं; दारोगा शाइकीया के साथ । वहाँ पुल पर तीन जन को गोली से उड़ा दिया गया है।' मैं बीच में बात काटकर पूछ उठा, 'क्यों?' उन्होंने बताया, 'पुल तोड़ने की आशंका पर ।' मैं भौंचक रह गया। इसके बाद कहा उन्होंने, 'सुनो, बहुत सावधान रहना है अब । कहीं भी आना-जाना तो देख-संभलकर...। कोई काग़ज़-पत्र हों तेरे पास तो मुझे देते जाना। समझे? "मेरे मुंह से भी स्वीकृति-सूचना में निकला, 'समझा !' एकदम से दीदी का स्वर गूढ़ हो आया । कान के पास मुंह लाकर बोलीं, चारों तरफ सी० आई० डी० के आदमी फैले हैं। एक सी० आई० डी० इन्सपेक्टर लापता है, मालूम है ?' मुझे मालूम न था। दीदी से कहा यह तो डांटते हुए बोलीं , 'क्यों नहीं मालूम ? हर बात का पता रखना चाहिए । नहीं तो काम कैसे करोगे ! बारपूजिया की ओर ही तो कहीं जनता ने गुस्से में आकर उसे मार डाला।' ___"माणिक बॅरा की सांस को चलते से एक झटका लगा। भिभिराम होंठ भींचे अपनी दृढ़ गति से पाँव बढ़ाये चल रहा था। धनपुर कहता गया : "कुछ सेकण्ड के लिए आइकण दीदी किसी सोच में पड़ी रहीं, बाद को एकाएक बोलीं, 'पर जनता भी क्या करे ! कितना-कितना तो अत्याचार हो रहा है ! यम-यातना से भी भयंकर !' उस दिन डॉक्टर जीजा घर नहीं लौटे । दीदी और मैं सारी रात बैठे ही रहे ! मुझे तो रह-रहकर उनके वे शब्द भी कुरेद उठतेः 'बहुत सावधान रहना है ! कोई काग़ज-पत्र हों तेरे पास तो मुझे देते जाना !' ___ "गोस्वामीजी का वह पत्र जेब में ही था। एक बार को हुआ दीदी को सौंप दूं। फिर बीड़ी पीने के बहाने बाहर गया और अपने हाथों उसे नष्ट कर दिया। ऐसा ही तो हम मृत्यु-वाहिनी वालों को आदेश है । है न ?” भिभिराम ने हां की और बताया कि गोली से मारे गये उन तीन जन में से एक का नाम हेमराम पाटर था, दूसरे का कानाई कोच । तीसरे का पता नहीं चला, शायद कोई देशवाली था। धनपुर का भी ऐसा ही अनुमान था। अपनी बात जारी रखते हुए आगे बोला वह : "कई दिन मैं बाहर निकला ही नहीं, डॉक्टर जीजा भी तीन दिन तक नहीं मृत्युंजय | 19
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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