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________________ माणिक बॅरा पुकार उठा : "पता नहीं इन पापिष्ठों ने हमारी कितनी-कितनी बहिन-बेटियों को नष्ट किया होगा ! क्या होगा उनका ! सोचने लगें तो आती नींद भी बहक जाये । इस बेचारी का ही अब क्या होगा? कौन करेगा इसके साथ ब्याह ?" एकदम से धनपुर तड़का: "मैं करूँगा। मैंने सोच लिया है। अभी वह आश्रम में है। वहीं रहेगी। उसकी देह में कहीं दोष नहीं है।" भिभिराम अभिभूत-सा हो आया। माणिक को आश्चर्य हुआ : "अरे, तुझे क्या धर्म-भय बिलकुल नहीं है ?" हँस उठा धनपुर : "धर्म-भय ? यही तो धर्म होगा । कॅली दीदी ने कहा है कि आन्दोलन समाप्त होने तक सुभद्रा को वे आश्रम में ही रखेंगी। उसके बाद हमारा ब्याह होगा । अर्थात्-इस बीच यदि मैं मारा न जाऊँ ।” भिभिराम की मुखमुद्रा खिल आयी थी। बोला : "देख-भालकर चलने पर कोई जोखम आड़े नहीं आती । किन्तु धनपुर, मैं तुम्हारी सराहना किये बिना नहीं रह सकता । अपनी भाभी को बता दिया है न?" ___"हाँ, उन्हें जैसे अच्छा नहीं लगा । न लगे, उससे क्या होता है । मेरा निश्चय अटल है।" तीनों मौन । रास्ते पर बढ़ते गये। भंग किया मौन को माणिक बॅरा ने : "सुना है बेबेजिया पुल पर पुलिस ने तीन जन को गोली मार दी । खबर सच है क्या धनपुर ?" ___"हां, सच है । मैं उस दिन डॉक्टर जीजाजी के पास फिर गया था। रात को भी रहा । आइकण दीदी के पास सब तरफ़ से ख़बरें पहुँचती ही रहती हैं । अख़बारी बातों का भी उन्हें पता रहता है । उन्होंने बताया था ।" आधएक मिनिट चुप रहकर आगे बोला धनपुर : "इधर जयप्रकाश नारायण और कुछ नेताओं के पत्र भी प्रसारित हुए हैं। इनमें जोर देकर कहा गया है कि असम प्रान्त में आन्दोलन को बराबर चलाये रखा जाये और एक 'असम गॅरिला वाहिनी' का भी संगठन किया जाये। गोस्वामी जी ने कॅली दीदी के पास हम लोगों के लिए एक पत्र भी भेजा था। जानते हो..." धनपुर के होंठों की कोरें एक अर्थभरी मुस्कान से उजल उठी : 18 / मृत्युंजय
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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