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________________ चाहता है, उसके साथ जाने की उसकी इच्छा नहीं है। वह किसी वॉलण्टियर के साथ ब्याह करना चाहती है । शइकीया ठहरा रईस आदमी। वह अपनी बेटी को किमी वॉलण्टियर के संग बियाहेगा ?" __ "कौन वॉलण्टियर?" रतनी ने सुपारी वगैरह डानकर पान का बीड़ा रचकी की ओर बढ़ा दिया। उसे स्वीकारते हुए रचकी बोली : "उसे भी मैंने देखा है। लड़का बड़ा लायक है। तुम्हारे मरद के साथ ही तो पार्टी में घुसा है।" "क्या नाम है उसका?" "रूपनारायण।" रचकी के चेहरे पर प्रसन्नता की हलकी-सी रेखा खिच गयी। आगे कहने लगी : “हमारे बारपुजिया का ही है ; लड़का बड़ा सुन्दर है। चतुर भी है । हमारे गाँव का नाम वही चमकायेगा। पढ़ते समय वजीफा पाता रहा है । शइकीया वकील ने उस पर तभी से आँख लगा रखी थी। सच री, लड़की-लड़के की बड़ी सुन्दर जोड़ी बनती।" "क्या शइकीया वकील थोड़े दिन और नहीं रुक सकता। देश को आजाद होने में अब और कितने-से दिन रह गये हैं भला?" रतनी ने कहा। रचकी व्यंग्य में बोली : "अरे शहरवाले लोग काने होते हैं । उन्हें कुछ सूझता थोड़े है। नोच-खसोटकर खाना भर जानते हैं । सफ़ेद कपड़े पहन लेने से ही कोई भला आदमी थोड़े हो जाता है । मैंने ख द अपनी आँखों से आरती को कई बार बाहर निकलते देखा है । शायद वो जाने ही है कि मैं रूपनारायण के गाँव की हूँ। अब यह सब सोचने से क्या ?" ___ रतनी कुछ बोली नहीं। वह स्वयं एक वॉलण्टियर की घरवाली है। इसलिए वह ऐसा सोच भी नहीं सकती कि वॉलण्टियर की घरवाली होना आपत्तिजनक है । हाँ, इसमें सन्देह नहीं कि उसे परेशानी अधिक उठानी पड़ी है। रात में जब कभी पुलिस, मिलिटरी और सी० आई० डी० वाले आ धमकते हैं। उसे जब-तब उन लोगों की मार भी सहनी पड़ी है। कभी-कभार वे उसे गालियाँ भी दे जाते हैं। इधर एक-दो शाम भूखा भी रहना पड़ा है। फिर उसके पैर भी भारी हैं। घर में दूसरा कोई है भी नहीं। टिको पहले बरठाकुर और शइकीया वकील की ज़मीन बटाई पर उठा लेता था इस बार घर की बौनी तक नहीं कर सका है। शइकीया अपने खेत किसी दूसरे आदमी को बटाई पर देना चाहता है, पर जनता की ओर से अभी मनाही कर दी गयी है । इधर घर-आँगन, दालान-गौशाला सबको उसे ही झाड़-बुहार कर साफ़-सुथरा रखना पड़ता है। उसका मायका है कलियाबर । वहाँ घर से बाप-दादे-भाई सबको पुलिस पकड़ कर ले गयी है। घर में केवल मृत्युंजय / 223
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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