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चौदह
एक मछुआरन मछली बेचकर बरठाकुर के घर से निकली और फिर टिको के घर का दरवाजा खोलकर अन्दर घुस गयी । सामने ही आँगन था। टिकौ की स्त्री रतनी ने कमरे से बाहर निकलकर पूछा :
"आज कौन-सी मछली लायी हो, रचकी दी?" आँगन में टोकरी रखते हुए रचकी ने कहा :
"अब इन मुए फौजियों के जुलम से कोई मछली नहीं बचनेवाली। चाहे वह सोनाई की हो या कलङ की। बस, रुपया सस्ता हो गया है, वही उड़ रहा है। खैर, तेरे लिए किसी तरह एक पाम मछली बचाकर ले आयी हूँ।" । उसने टोकरी से मछली निकालकर आँगन में रख दी। मछली मरी हई तो थी लेकिन सड़ी नहीं थी। रतनी ने उसे अपनी उँगलियों से छू-छाकर देखा और मुसकराकर बोली :
"इसे बरठकुराइन के घर से बचाकर कैसे ले आयी? क्या इस पर उनकी नज़र नहीं पड़ी?"
उसने मछली को उठाकर रसोईघर के एक कोने में ढककर रख दिया। फिर पिछवाड़े की पोखरी पर हाथ-पाँव धो भीतर से पन्नबट्टे को भी उठाकर लेती आयी और वहीं आँगन में आकर बैठ गयी। ___"अरी हाँ, मछली तो वह रख लेना चाहती थी, पर मैंने नहीं दी। तेरे लिए ले आयी । मेरा मरद भी तो आनेवाला है। रतनी, इस भगोड़े से मैं तंग आ गयी
रतनी पनबट्टा खोलने में लगी थी। वह कुछ कहना ही चाहती थी कि रचकी स्वयं आगे बोल उठी : ___"मैं शहर से आ रही हूँ। वहाँ तो वाबेला-सा मचा है । शइकीया वकील के घर भी गयी थी। सारे मुलक में आग लगी है और उसके घर में चँदोवा टँगा है । उसने दस मछलियाँ खरीदीं। फिर बोला, 'जलपान करती जा ।' घर के भीतर दूसरा ही तमाशा था। उसकी बेटी रो-रोकर बेहाल थी। अपने कमरे में भीतर से कुण्डी लगाये रो-धो रही थी। सुना है, शइकीया वकील उसे जिसके साथ ब्याहना