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________________ रूपनारायण थोड़ी देर चुप रहा । बोला फिर : "मैं सोचता हूँ माय की ओर चल देना चाहिए ।" " इस समय रहने दो। रात में भी कई व्यक्ति पकड़े गये हैं वहाँ । डिमि नाम की एक गारो युवती भी पकड़ी गयी है । उसकी ख़ ूब पिटायी भी की है ।" " किसने ? " पुलिस ने । इस समय भी वह पुलिस के हाथों में है ।" कुछ देर के लिए टिकी चुप रहा। सोचकर उसने फिर कहा : " शायद कल परेड होगी। माय से गिरफ़्तार किये लोगों में से रेल उलटनेवालों की शिनाख्त की जाने वाली है । गारो और नेपाली गाँवों के भी बहुत सारे लोगों को भी गिरफ़्तार करके ले गये हैं । " रूपनारायण चुप रहा आया। फिर थोड़ी देर बाद उसने पूछा : "बन्दु जहाँ गाड़ी गयी हैं, कम से कम एक बार वहाँ तक तो चलो ।" "वहाँ अभी कैसे जाया जा सकेगा ? वहाँ एक दर्जन मिलिटरी वाले तैनात हैं ।" "अब भी ?" रूपनारायण चकित हुआ । "हाँ । अभी यहीं रुकना अच्छा है । पहले रात बीत जाने दो। सवेरे देखा जायेगा। कल शाम तक सोनाई पार कर खाटोवाल गाँव तक चलने का इरादा है। एक-दो नेताओं को भी बुलाया है ।" रूपनारायण थककर चूर हो गया था । इसलिए फिर से नींद आने में देरी नहीं लगी । सोनाई - तट का सवेरा । चिड़ियों का प्रातः का कलरव । कितने ही रंग-बिरंगे पक्षी चहचहा रहे थे । प्रातः काल के मलय पवन से जंगल के पेड़ों की पत्तियाँ डोल रही थीं । टिकी कहने लगा : "आते समय घर में चावल का इन्तज़ाम भी न कर सका। बरठाकुर की खेती टाई में न मिलने पर इस बार भूखों मरना पड़ेगा। बरठाकुर की बीवी बड़ी कंजूस है | मांगने पर भी कुछ नहीं देती है ।" "यही तो व्यक्ति की कमज़ोरी है," रूपनारायण के स्वर में क्रोध और करुणा मानो दोनों भावनाएँ एक साथ आ मिली थीं । उसने कहा, "टिको, भूखा केवल तू ही नहीं है । देश के न जाने कितने घरों में चौका नहीं लगता है । उसके ही लिए तो यह सब किया जा रहा है । feat कुछ नहीं बोला । मृत्युंजय | 221
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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