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________________ कारियों के लिए भी यह सचमुच सोनाई है। इसके तट पर पहुँचे कि फिर पुलिस की क्या हिम्मत कि हममें से किसी को पकड़ ले। ऐसा भी कहा जाता है सोनाई तट पर कोई अनजान आता है तो उसे परियाँ पकड़ ले जाती हैं । किनारे के पेड़ों पर कौए विश्राम कर रहे थे । नाव खेने की छप्-छप् आवाज़ सुन वे काँव-काँव करने लगे । रूपनारायण की ओर देखकर टिकौ ने कहा : "सुन रहे हो न यार ! इन्हीं में से एक कौवे को श्रीरामचन्द्र ने सरकण्डे का बाण मारा था ।" उसका मन त्रेतायुग में लौट गया : "विवाह के पश्चात् मैं इसी रास्ते घर लौटा था । तब इसी तट पर मुझे एक रात बितानी पड़ी थी । कहीं से कुरुबावाही के एक भगतजी भी आ गये थे । उन्हीं ने मुझे माधव कन्दलि रामायण का वह अंश सुनाया था । चित्रकूट में मन्दाकिनी के तट पर श्रीरामचन्द्र और सीताजी के विहार का प्रसंग था वह : राम सीता क्रीड़ा करे चित्रकूट बने । शची समे देवराज येहेन नन्दने ॥ सीताक बुलिल राम हरषि बदने । अयोध्या र भोग आउर न परम मने ॥ गिरिर कन्दरे मन्द सुरभि अपार । आछोक मनुष्य मन मोहे देवतार ॥ मानस शिलार फोट सीता देवी दिल । अलिङ्गन्ते रामर हिताय सञ्चरित ॥ हेन देखि सीताये करिला परिहास । सुरत श्रृंगार बर भैल अनेक हरिष भैल रामर शरीरे । अभिलाष ॥ सीतार उरुत शिरे शुइला नदी तीरे ॥ तत्पश्चात् राम को सोया हुआ देख एक कौवा आ गया और सीतार रूपक देखि काक भेल भोल । एक दोवा करि गैया चापिलेक कोल ॥ राघवर आतिशय निद्रात देखिया ॥ सीतार तनत परिलेक जम्प दिया || जानते हो इसका अर्थ ? सुनो, मैं बताता हूँ इस सारी कथा का सार : " राम और सीता चित्रकूट वन में क्रीड़ा कर रहे थे । वहाँ की गिरिकन्दराओं के सुख के आगे अयोध्या के भोग-विलास भी फीके पड़ गये थे । एक दिन राम नदी तट पर सीता की जाँघ पर सिर रखकर सो रहे थे। तभी पास ही बैठा एक कौआ सीता के रूप पर मोहित हो गया। वह फुदककर सीता की गोद तक पहुँचा और सीता के खुले हुए स्तन को चोंच मार दी। सीता के विह्वल होते 216 / मृत्युंजय
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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