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________________ "कहाँ ।" " रोहा, और कहाँ ! वहाँ नेशनल वार फन्ट की एक सभा हुई थी। शहर का वह घमण्डी आफीसर भी वहाँ मौजूद था। पेमफ्लेयर साहब सभापति की कुर्सी पर थे। मौक़ा मिलते ही मैंने वहाँ एक गीत भी गाया था ।" "कौन-सा ?" " मेरी जेब में बाँस की दो पट्टियाँ थीं, उन्हें बजा-बजाकर मैं ज़ोर-ज़ोर से गाता रहा । ससुरे सुनते रहे : उत्तर में कपिली दक्खिन में सोनाई । ताव के साथ लाव-लश्कर मिलिटरी और फ़ौज लेकर शहर में पहुँचा लम्बोदर तिलक का फोड़ दिया है सर उत्तर में कपिली दक्खिन में सोनाई । यहाँ अब भूतों का है राज हमें तो है, स्वराज के काज उत्तर में कपिली दक्खिन में सोनाई । यहाँ कोई आ ना पायेगा । फँसा तो जा ना पायेगा उत्तर में कपिली दक्खिन में सोनाई । टिको ने गाना बन्द कर दिया। रूपनारायण का बोझिल मन थोड़ा हल्का हो गया । उसने सोचा, यह भी कम बहादुर नहीं है । टिको के इस गीत गाने का क्या परिणाम हुआ, यह जानने के लिए उसका मन उत्सुक हो उठा। उसने पूछा : "क्या दारोगा लम्बोदर शइकीया वहाँ नहीं था ? " "था क्यों नहीं । पर रहकर भी मेरा क्या कर लेता ? बात ही बात में मैं स्वराज्य की बात कहकर वहाँ से निकल आया । शइकीया मुझे लगातार घूरता रहा । शायद पकड़ भी लेता पर पेमक्लेयर साहब की बात ही और है । वे मुसकरा रहे । मानो गीत में उन्हें भी रस आ रहा था । आफीसर साहब का चेहरा फक पड़ गया था ।" टिको हँसने लगा । रूपनारायण ने टिको की पीठ थपथपा दी। टिकौ का उत्साह दुगुना हो गया । बोला : "तू तो जानता ही है कि गीत रचते रचते ही मेरे बाल सफेद हुए हैं । अरे हाँ, वह सर्वेश्वर जो हमारा साथी था न पक्का कम्युनिस्ट हो गया । वह जनयुद्ध की रट लगाते हुए घूमता रहता है। एक दिन एक सभा में उससे भी भेंट हो गयी। वह दुधमुँहा मुझ जैसे जरद्गव के हाथ पड़ गया । मैंने उसे वहीं दबोच 214 / मृत्युंजय
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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