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"इधर ये लोग अपनी करनी से एक दिन भी बाज़ नहीं आते।” रूपनारायण को उसकी अनर्गल बातें अच्छी नहीं लग रही थीं । बोला : "चुप भी रहोगे ? विष का बीज मत बोओ ।" "और रह भी क्या गया बाक़ी ?"
"क्या हुआ ?"
"होगा क्या ! वह कामेश्वर है न, वह भी मुखबिर बन गया है ।" "क्या ?" रूपनारायण चिन्ता में पड़ गया । उसने पूछा, "वह कहाँ है ?" " वनराज के पेट में ।"
"मैं समझा नहीं ।" रूपनारायण परेशान हो उठा ।
टिको ने मन-ही-मन जल्दी से हिसाब लगाकर कहा :
" हातीचोड. की तरफ़ बढ़ते ही वह मार डाला जायेगा । उसे इस बारे में सब कुछ पता है और उस जगह के बारे में भी सब कुछ जानता है जहाँ बन्दूकें छिपाकर रखी गयी हैं ।"
"यह तो बहुत ही बुरी ख़बर है" रूपनारायण अपनी बात पूरी न कर
पाया ।
टिको ने अपनी बात पूरी की :
"यहीं नहीं, उसने दीघली आटि का 'बन्दूक प्रशिक्षण केन्द्र' भी देख लिया
है ।"
"अच्छा" !” कहते हुए रूपनारायण गहरी चिन्ता में पड़ गया । वह कुछ बोल न पाया । इसका मतलब तो यही हुआ न कि पुलिस को इन सारी गुप्त योजनाओं के बारे में पता चल गया है। गोवर्द्धन पहाड़ की गुफ़ाओं के बारे में वह किसी सीमा तक आश्वस्त था । लेकिन अब उन्हें भी छोड़ना होगा। योजना को कार्यान्वित करने योग्य कोई स्थान नहीं । लगता है नाव बीच धार में ही डूब रही है ।
टिको इतना कुछ तो नहीं सोच-समझ पाता । उसे ये सारी बातें सहज ही लगती हैं । वह इनकी तहों में नहीं पहुँच पाता ।
गड्ढा पार कर वे जिस रास्ते से आगे बढ़े थे, वह समाप्त हो रहा था । इसके आगे एजार का एक पेड़ था । दोनों उसके नीचे रुक गये । वहाँ दो गीदड़ सो रहे थे। आदमी की आहट पाते ही वे कच्चू के पौधों की ओर भाग गये । टिकौ ने कहा :
"अगर क्रान्तिकारी भी गीदड़ की तरह ही चालाक होते तो चिन्ता की कोई लोमड़ी बात नहीं थी । लेकिन सबके सब तो गीदड़ हो नहीं सकते। इनमें बाघ, और बन्दर भी होते हैं । जहाँ तक मेरी बात है, मैं बन्दर हूँ । ही उधर कूदता - फाँदता चला गया था।"
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एक सप्ताह पहले
मृत्युंजय / 213