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"तुम्हें ख़बर कैसे मिली ?" "शान्ति-सेना के स्वयंसेवकों से पता चला।" "तो शान्ति-सेना अब भी जिन्दा है ?" "हाँ।"
चेहरे का पानी पोंछ इस बार डिमि ने बालों को झटकार कर फला लिया। क्षण भर रुककर वह बोली :
"अब तुम लोग सब यहाँ आकर रुककर क्या कर रहे हो ? चलो, चलकर आग बुझाओ।"
डिमि के स्वर में आदेश था । जयराम यह समझ भी नहीं सका कि पुरुषों को आदेश देने की शक्ति उसने कहाँ से पा ली ! सबमें मानो चेतना की लहर दौड़ गयी। वे तेज़ी से गाँव की ओर दौड़ पड़े। सबके अन्त में चले वे दोनोंडिमि और जयराम।
चलते-चलते डिमि ने पूछा : __ "रास्ते में बलबहादुर मिला था ? वह घाट पर नहीं दीखा।"
"नहीं, वह फरार हो चुका है," जयराम ने रुकते हुए कहा । इधर पुलिस उसका कई बार पता करने आयी थी । मैं दूर-दूर की सारी ख़बर लेता रहा हूँ। केवल तुमसे ही भेंट नहीं हो सकी थी। लग रहा था उन लोगों ने कहीं तुम्हें मार तो नहीं दिया। आजकल किसी को मार डालना कुछ भी कठिन नहीं है, समझी न ! किन्तु तुम तो सचमुच बच निकली। शहर का क्या हालचाल है ? गिरफ्तार हुए लोगों का क्या हुआ?"
जयराम के प्रश्न में एक उत्कण्ठा थी। गाँव लौटने के बाद डिमि को किसी के साथ अभी तक खुलकर बात करने का मौक़ा भी नहीं मिला था । यहाँ पहुँचते ही लगातार एक के बाद दूसरी कितनी ही घटनाएं घटती रहीं । नगाँव शहर में उसकी आँखों देखी घटनाएं तो उसे मानो बहुत दिन पहले घटी प्रतीत हो रही थीं । यहाँ सारे दिन नयी-नयी घटनाएं होते देख रही थी। फिर रोज़मर्रा की सामान्य घटनाएँ तो ये थीं नहीं।
डिमि को सहमा गोसाइन की बात स्मरण हो आयी। कहने लगी :
"गोसाइन को पुलिस गिरफ्तार कर ले गयी थी, किन्तु थाने में जगह नहीं थी। जेल भी भर चुकी थी। इसलिए एक रात सबको थाने के बरामदे में ही रखा गया था । गोसाइन का फुफेरा भाई ही उस थाने का दारोगा है। नाम शायद अनन्त है। गोसाइन उसी आदमी को खोज रही थीं। पर वह मिलता कहाँ ? इस शइकीया की तरह ही अत्याचारी होने के कारण उसे जनता का अभिशाप भोगना पड़ा है। उसे पकड़ने के लिए बहुतेरे जन घात लगाये बैठे हैं। आज सात दिनों से वह हातीचोङ मौजे में ही है । जो क्रान्तिकारी अब तक गिर
204 / मृत्युंजय