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________________ फ्तार नही हो पाये, उन्होंने शायद बारपूजिया और हातीचोङ मौजे को ही अपना केन्द्र बना लिया है। उधर पुलिस ने भी उन दोनों क्षेत्रों में अपना जाल फैला रखा है। " जेल के सामनेवाले रिज़र्व मैदान में समय काटते-काटते गोसाइन ने यह बात बतायी थी । उसे सुनकर मैंने घृणा से नाक सिकोड़ ली थी । गोसाइन के पिता या पति कोई भी अनन्त को देखना तक नहीं चाहते थे । किन्तु गोसाइन का व्यवहार उसके साथ अच्छा था । आन्दोलन के दौरान वह कई बार मायङ भी गया था । गोसाइन ने चाय-नाश्ते से स्वागत-सत्कार कर उसे चेतावनी भी दे दी थी। " सामान की नीलामी के लिए जैसे डाक बोली जाती है, वैसे ही गिरफ़्तार किये गये लोगों की जमानत के लिए रिज़र्व मैदान में डाक बोलनी पड़ रही थी । शहरी आदमी केवल देखने में ही फ़िट फ़ाट हैं । दरअसल वे बड़े डरपोक हैं'ऊपर से फ़िट-फ़ाट, भीतर से मोकामाघाट ।' सौ एक आदमी रहे होंगे । मायङ मनहा, बेबेजीया, हातीचोड़, बारपूजिया, कलियाबर और रोहा अंचलों के तमाम स्थानों से लोगों को गिरफ़्तार कर वहाँ लाया गया था । ज़मानतें लेने के लिए भी कोई सामने नहीं आना चाहता है । केवल भुइयाँ के घर के एक-दो लड़के और कलियाबर से जाकर शहर में बस गये कुछ लोग ही शेरदिल हैं । कलियाबर से अनेक खेतिहरों को पकड़कर लाया गया है । 1 " दिन में धूप, रात में ठण्डक और तिस पर भी जान लेवा मच्छर - कष्ट का कोई पारावार नहीं था । पर किया क्या जाता, सभी के सभी खुले मैदान में ही पड़े थे । और गोसाइनजी - वह तो बेचारी पीड़ा से छटपटा रही थीं । प्रसव का समय भी तो निकट आ गया था । गर्भवती महिला की दुःख पीड़ा देखकर भी बहुत देर तक पुलिस ने कोई ख़बर नहीं ली । क्रोध में सभी सरकार को उल्टीसीधी गालियाँ तक देने लगे थे । संसार में इससे अधिक लज्जा की बात और क्या हो सकती है कि एक भले परिवार की महिला शहर के बीचों-बीच खुली जगह में दिन के उजाले में ही सबके सामने प्रसव करे। ख़बर पाते ही आखिर कहीं से फुकनजी आ गये। साथ में उनकी मोटर भी थी। उन्होंने खुद गोसाइन जी की जमानत ली और उन्हें एक सम्बन्धी के घर लिवा गये । भूखे-प्यासे शोकसंताप और नींद न आने से बेहाल बन्दियों ने तभी चैन की साँस ली थी । "उधर से ही तो मैं उस दिन गोसाइन को देखने भी गयी थी । तब तक वे एक पुत्ररत्न पा चुकी थीं । चाँद सा मुन्ना : गोरा, बड़ा प्यारा । उसे पा गोसाइन ने मानो सब कुछ पा लिया । कहने लगी थीं, 'डिमि, गोसाईजी को कहना कि आकर वे एक बार उसे देख जायें । " बात करते समय उनके चेहरे पर अपूर्व आनन्द की आभा फैल रही थी । मृत्युंजय / 205
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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