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________________ उसे हैरानी हुई कि गाँव के सारे मर्द कहाँ चले गये। इनमें धनपुर की तरह उत्साह क्गों नहीं ! घुट-घुटकर मरने और भागने-छिपने से तो अच्छा था दुश्मनों को मारते हुए मर जाना। __ घाट पर कुछ हलचल-सी हुई। गांव के ही कुछ लोग वहाँ इकट्ठे हुए थे। डिमि ने फिर से उस ओर कान लगाया। उनकी बातों से लगा, वे सब आग के डर से बालू पर भाग आये हैं। ईख के खेत से निकलकर डिमि भी किनारे पर चली आयी। घाट पर आकर उसने ज़ोर की आवाज़ लगायी : "वहाँ घरों में आग लगा दी गयी है और तुम सब यहाँ बैठे हाथ ताप रहे हो ?" उधर से किसी ने हाँक लगायी। "अरे, तू कौन है ?" "मैं हूँ.."डिमि।" "अरी चुडैल, तू कहाँ मर गयी थी? शइकीया के लोग तुझे ढूँढ़ रहे थे। तू मिली नहीं तो उसने सारे गाँव को आग में झोंक दिया।" डिमि ने जोर से ललकारा : "तब तुम मर्द लोग कहीं छुपे बैठे थे ? उसकी गर्दन क्यों नहीं उतार लाये ?" कहती हुई डिमि ने पानी में छलांग लगा दी। तैरती हुई उस किनारे पर पहुँची जहाँ सभी मन मारे खड़े थे। डिमि एक बार फिर बुरी तरह भीग गयी थी। उसकी सारी देह पानी और कीचड़ से लिथड़ गयी थी। लहँगा निचोड़ती हुई उसने फिर गाँववालों से कहा : "बड़े मर्द बनते हैं ?" किसी ने कुछ न कहा । उनकी आँखें नीची थीं। "वे सब हैं या चले गये ?" "चले गये ?" "किसी ने देखा है या...?" तभी झाड़ी से जयराम बाहर निकल आया। बोला : "हाँ वे लौट गये, मैंने देखा था । जानती हो क्यों ?" "क्यों ?" डिमि की आँखों में भी वही सवाल था, जो होंठों पर था। “मैंने सुना है कि हातीचोङ और बारपूजिया की तरफ़ कांग्रेस और मृत्युवाहिनी की एक सभा हुई है। उसमें इन अत्याचारियों की हत्या करने के लिए संकल्प किया गया हैं। एक सूची भी तैयार की गयी है । और उसमें पहला नाम है शइकीया का । इन सबको पकड़ना है।" जयराम ने बताया। मृत्युंजय | 203
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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