SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 199
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कि डिमि को कब देखे । क्या वह उसे देख पायेगा ? गारोगाँव के लोग भी शायद इसी ओर भागे चले आ रहे हैं । शकीया के हार जाने पर लयराम ने धनपुर से पूछना चालू किया : “धनपुर ! बतलाता क्यों नही ?" धनपुर उबल पड़ा : " तू विश्वासघाती ! मुखबिर ! तुझसे कौन बात करेगा ? हाँ, एक बात 11 सुन उस चरम पीड़ा में सारी शक्ति समेटते हुए उसने आगे कहा : "तुम लोगों पर आज़ाद भारत में बाल-बच्चे भी पछतायेंगे, बिलख-बिलख कर इतना ही कह पाया था कि एकाएक वह बेहोश हो गया । कया और लयराम एक दूसरे का मुख ताकने लगे। उनके चेहरों पर हंसी नहीं थी । लयराम का मुँह लटक गया था । गोसाईंजी की मृत देह को देख कर ही उसका दिल बैठ गया था। इधर धनपुर की मूर्च्छा से वह असमंजस में पड़ गया । मरते समय भी वह उसे विश्वासघाती कह गया । किन्तु विश्वासघात करने की उसकी ज़रा भी इच्छा न थी । वह तो केवल प्रतिशोध लेना चाहता था । पर कहाँ ले पाया ? वे स्वयं जूझकर चल बसे । बाक़ी के भाग खड़े हुए। अब भला किसी को कैसे पकड़ा जा सकता है ? वह धनपुर के पास बैठ गया और उसकी नाड़ी देखने लगा । बोला : " अब यह बोल भी नहीं सकता है ।" विचार किया जायेगा । तुझ जैसे के रोयेंगे " ..."" " रुको,” शइकीया ने कहा "ज़रा इसकी जेब की तलाशी ले लूं । शायद कोई सुराग मिल जाये ।" अच्छी तरह तलाशी लेने के बावजूद शइकीया को कुछ नहीं मिला । वह निराश हो बोला : "देश भर के लोग धोखेबाज़ हो गये हैं । कोई उपाय नहीं है । किसे क्या कहा जाय ! चलो, आगे चलें । पहले जिंदा लोगों को पकड़ें। इस 'मुर्दे को तो बाद में भी ले जाया जा सकता है। अभी यह पूरी तरह मरा नहीं है ।" "अब किसे पकड़ोगे ? पकड़ भी पाओगे ?" लयराम ने आह भरते हुए कहा । शकीया ने लयराम के चेहरे की ओर देखा । उसका हौसला पस्त हो चुका था । लगा जैसे वह अब पहले जैसा साथ नहीं दे पायेगा । बोला : I "चलो, गारोगाँव तक चलते हैं ।" "नहीं, अब इधर नहीं जा सकता । सबका रोना-बिलखना और कब तक सुनता रहूँ ? उन बेचारों को व्यर्य ही क्यों सता रहे हो ?" मृत्युंजय | 195
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy