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________________ पर ठहर गयी । सब कुछ साफ़ हो उठा। लेकिन शइकीया को अब भी सन्देह था । कुछ-कुछ डरता हुआ बोला : "ज़रा इधर देखो तो, वह बाघ है या तेंदुआ ?" लयराम उस ओर निगाह डाली । बोला : "भला बाघ या तेंदुआ उस तरह क्यों पड़ा रहेगा ? सारी ज़िन्दगी जंगलों में ही तो घूमा-फिरा हूँ ।" थोड़ी देर सोचकर फिर बोला, "पास जाकर देखूं क्या ?" लयराम उत्तर पाने के लिए रुका नहीं । वह उसके निकट जा पहुँचा । उसने देखा कि वहाँ औंधे मुँह कोई आदमी पड़ा है। पूछा : "ए, कौन है तू ?" "तुम्हारा बाप " धनपुर का उत्तर था । " धनपुर !" लयराम की ख़ ुशी का पार नहीं रहा । खुशी के मारे हड़बड़ाता हुआ कहने लगा, “मिल गया, पकड़ा गया। इस बार जाल में रोहू फँसा है ।" टॉर्च की रोशनी में अच्छी तरह देखने पर सहसा दायी टाँग पर गयी । देखते ही वह कुछ-कुछ निराश हो मरी हुई है ।" शइकीया भी क़रीब आ गया। टॉर्च की रोशनी में धनपुर को सिर से पैर तक परखते हुए उसने कहा : "इसकी टाँग देख रहे हो न ?" उसकी नज़र धनपुर की गया । बोला : “मछली "हाँ, देख तो रहा हूँ ।" "गोसाई-जैसी ही हालत है । गोसाईं तो तभी मर गया था, पर यह अब भी छटपटा रहा है ।" गोसाईं का नाम सुनते ही धनपुर कराहते हुए भभका : " तो तुम लोगों ने गोसाईजी को मार डाला ?” लयराम बोला : “हाँ तुम्हारा गोसाईं अब नहीं रह गया है। उसकी लाश गाँव भेज दी गयी है । कहो तुम्हारा यह हाल कैसे हुआ ?" "इससे तुम्हें मतलब ?” " मतलब है, " शइकीया तमक उठा । "रेलगाड़ी को उलटने जा रहे थे, तभी ऐसा हुआ है न ?” धनपुर कुछ नहीं बोला । शकीया ने और भी जिरह शुरू की पर धनपुर कुछ बतला न सका । उसकी शक्ति क्षीण होती जा रही थी। वह किसी भी सवाल का जवाब न दे सका । शकीया के आ जाने की भी उसे परवाह न हुई । वह मात्र यही सोच रहा था 194 / मृत्युंजय
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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