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डॉक्टर सन्न-सा चुप बैठा था। मैं भीतर पहुँचा। मगर क्या बताऊँ ? वहाँ भी वही कच्ची मछलियों की सड़ीली गन्ध !
"डॉक्टर ने मेरे ऊपर आँख पड़ते ही डरे-से स्वर में पूछा, 'कौन हो तुम ?' मैंने बताया, 'मुझे कॅली दीदी ने भेजा है। सुभद्रा की हालत ठीक नहीं है। आपको अभी बुलाया है। डॉक्टर ने बाघ की जैसी आँखों से मेरी ओर देखा। पूछा, 'कहाँ घर है तेरा?' कामपुर का नाम सुनते ही दो पल को वह चुप रहे, उसके बाद चश्मे के पीछे से अपनी पैनी आँखें मेरी आँखों में गड़ाये हुए बोले, 'गोसाईं जी के आसपास कहीं क्या?' मेरे 'हाँ' करने पर वे सन्तुष्ट जान पड़े। ... "एक नज़र द्वार के बाहर देखकर बोले, 'सब-इन्सपेक्ट र आता होगा । अभी भीतर जाकर छिप रहो।'
"हठात् वही सड़ायँध यहाँ भी घेर आयी। पूछने पर उन्होंने बताया, 'जोंगलबलहु गढ़ में एक आदमी को गोली मार दी थी। मैंने जानना चाहा, क्यों? खोजते हुए बोले वे, 'क्यों-क्यों क्या ! वॉलण्टियर होने का शक हुआ कि गोली मार दी। यह पड़ी है लाश !'
__"मैंने देखा टाट में बँधा हुआ एक बेडौल गट्ठर एक तरफ़ को लुढ़का पड़ा था। मन को आघात लगा। बेचारा! सोचा, यह हुआ मानव के जीव का मूल्य ! परचूनी की दूकान में जैसे गुड़ की बोरी पड़ी हो ! कमरे में अँधेरा था, और सड़ायेंध भरी थी।"
मुंह की बीड़ी से दूसरी जलाते हुए धनपुर कहता चला गया :
"डॉक्टर से पूछा-कहां मारा गया यह, तो उसके चेहरे का रंग उड़ गया। थूक निगलते हुए अस्फुट स्वर से बोला, 'जोंगलबलहु गढ़ । गोली चली थी।' दो बार पूछने पर नाम बताया : गुणामि बरदलै। इसके बाद एकदम से जैसे झल्ला. उठा, 'तुझसे कहा न; दरोगा किसी भी पल आ पहुंचेगा, जल्दी से भीतर कहीं छिप जा !' ___ "मैं तुरन्त पीछे के आंगन में चला गया। वहाँ गोसाईंजी की बहिन आइकण दीदी थीं। देखते ही वे चौंककर चिल्लाने को हुईं। मैंने अनुनय की। 'दीदी, मैं धनपुर हूँ, चिल्लाइये मत ।' सच तो उन्हें वहाँ देखकर मुझे स्वयं आश्चर्य हुआ । बाद को ध्यान आ गया कि यही डॉक्टर तो आइकण दीदी के पति हैं । आगे और सब बताने को हुआ कि डॉक्टर साहब वाले कमरे से आती दारोगा की आवाज सुनाई दी।
"आइकण दीदी मेरी शक्ल देखकर ही सब समझ गयीं। धीरे से बोलीं, 'उधर एक कमरा है, वहां बैठो। मैं चाय बनाकर लाती हूँ।' बैठ गया वहाँ अंधेरे में जाकर। थकान और आशंकाओं के मारे मेरे प्राण मंह को आ रहे थे। ऐसा जान पड़ता था जैसे किसी नागपाश ने जकड़ रखा हो । थोड़ी देर बाद दीदी ने
मृत्युंजय | 15