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________________ रही थी। धीरे-धीरे सुनसान गहरा चला। आकाश में चाँद चमक उठा। और चट्टान के उस पार झाड़ी में इन्द्र के हज़ार नेत्रों की तरह जुगनुओं का प्रकाश फल आया। अचानक दधि मास्टर को दूर नदी की ओर से जंगली हाथियों की चिंघाड़ 'सुनाई पड़ी। पर उधर कान देने से होगा क्या ! उसे तो चट्टान की भाँति यहीं खड़े रहना है। गोसाईं आदि के लौटने के बाद ही कहीं छुट्टी मिलेगी। हाँ, यहाँ भी एक स्कूल ही तो है। पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, मिट्टी-पत्थर, प्राकृतिक रंग : सब प्रकृति से निर्दिष्ट पाठ सीखते हैं और परीक्षा पूरी करते हैं । और विचित्रता तो यह कि इस स्कूल में सभी अपनी-अपनी शृंखला स्वयं बनाये रखते हैं । दधि मास्टर को याद आ गयी मायङ की अपनी पाठशाला। चार महीने से बन्द है । मास्टर ही जो वहाँ से भागा हुआ है । जो दो-चार पढ़नेवाले बच्चे थे, वे मटरगश्ती करते होंगे, उनके मां-बाप भी सोचते होंगे कि आखिर पढ़कर ही क्या तीर मार लेंगे वे। कितने ही उनमें ऐसे थे जिन्हें सवेरे से जुताई में लगना पड़ता और बाद को भी भूखे पेट ही स्कूल आना पड़ता। कभी-कभी तो आ भी नहीं पाते । धान का बीज डालने, रोपनी और सिंचाई के समय तो सबको माँ-बाप के साथ सारे-सारे दिन खेतों पर ही लगा रहना पड़ता है। न करें तो जितना कुछ पेट के लिए मिल पाता है उसके भी लाले पड़ जायें। बानेश्वर राजा और आहिना कोंवर के बच्चों तक की यही हालत है। लड़कियों को तो जैसे स्कूल भेजना आवश्यक ही नहीं समझा जाता। दधि का चिन्तन-क्रम चलता रहा। ध्यान हो आया उसे कि बच्चों की पढ़ाई के लिए इतना कुछ भी हो सका इसके लिए गोसाईजी को और स्वयं उसे कितनाकितना कुछ करना पड़ता है। किन-किन उपायों से अभिभावकों को राजी किया जाता है कि बच्चों को स्कूल भेजें। और स्कूल की यह हालत कि कीर्तनघर की तरह वहाँ दीवारें तक नहीं हैं । चार खम्भों पर किसी तरह टिका हुआ एक छप्पर भर है । बैठने के लिए कहीं कुछ नहीं । उसका अपना घर ही ऑफ़िस है । बच्चे बैठने के लिए घर से चटाई का टुकड़ा या केले का पत्ता साथ लाते हैं । वह स्वयं अपने लिए चटाई लेकर जाता है। और तो और, चारों ओर से खुला होने के कारण गाँव के छुट्टे गाय-बैल आकर गोबर तक कर जाते हैं इसीलिए स्कूल आने पर मास्टर और छात्रों का पहला काम होता है सफ़ाई करना । बारिश होने पर छप्पर चूने लगता है और जाड़ा आने पर तो ब्रह्मपुत्र से नहा-नहाकर आती पछुवा हवा मास्टर और लड़कों की कौन कहे, किताब-कापियों तक को कँपा-कपा जाती है। ऐसे में जब-तब तो स्कूल में छुट्टी तक कर देनी पड़ती है : कभी आधे दिन की, कभी पूरे दिन की । निपट देहात होने के कारण स्कूल के इन्स्पेक्शन के लिए कोई अधिकारी भी कभी नहीं फटकते। भूले-भटके किसी के आने की खबर मिलते 178 / मृत्युंजय
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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