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________________ ही चारों ओर खलबली मच जाती है। किस-किस तरह से स्वागत किया जाता है ! कितना-कितना सम्मान उन्हें मिलता है ! मगर कुछ भी इन्हें याद रहता है क्या? लौटकर शहर पहुँचे कि किया-दिया सब साफ़ । अपने वेतन के लिए दौड़तेदौड़ते दधि मास्टर के तलवे घिस जाते हैं। फिर भी मास्टर बना रहना चाहता है दधि । उसे बोध है कि शिक्षा के बिना सब मिथ्या है। पर गाँव के लोगों को शिक्षित करने के लिए सचसुच हमें चाहिए एक नयी सरकार, अपनी सरकार । गोरे साहबों की सरकार कुछ नहीं कर सकेगी। इसीलिए तो स्वराज्य... अकस्मात् आकाश-पाताल को कपाती हुई एक भयंकर आवाज़ सुनाई पड़ी। दधि ने आँखें मूंद छाती पर हाथ रख लिये। .. और रूपनारायण ने देखा कि लम्बी रेलगाड़ी के विशाल इंजन की छकछक अचानक बन्द हो गयी । इंजिन रेल की पटरी से लड़खड़ाकर खाई में को लुढ़क गया। साथ ही कई डिब्बे एक-दूसरे से टकराते हुए खाई में जा रहे । सारी घटना क्षण-भर में घट गयी । लगा जैसे एक प्रचण्ड विस्फोट हुआ हो। खाई की गहराई प्रायः एक सौ पचास फुट रही होगी। सन्ध्या समय स्वयं रूपनारायण ने निरीक्षण किया था। दसों डिब्बों के उलटने और लुढ़कने के साथ ही भीषण चीख-पुकार रूपनारायण को सुनाई पड़ी। यह चीख-पुकार गाड़ी में सवार फौजियों की थी। भीषण कोलाहल ! हृदयविदारक चीख-पुकार । कोई भी डिब्बा उलटे बिना बचा न था। कुछ डिब्बे पटरी के पास ही गिरे थे। पर तीन-चार बार लुढ़ककर और आपस में टकराकर ये भी एक जगह ढेर होकर रह गये। कई डिब्बों में आग लग उठी थी। उसके प्रकाश में ही रूपनारायण यह सब देख पाया। भयंकर चीख-पुकार और हाहाकार के साथ ही मृतकों के जलने की चिरायध असह्य हो उठी थी। सहसा किसी डिब्बे से छिटककर किसी का एक टूटा हुआ हाथ रूपनारायण के आगे आ गिरा । चौंककर वह दो हाथ पीछे को हटा। उसका रोम-रोम काँप गया। __उधर डिब्बों के टकराने, लुढ़कने और खण्ड-खण्ड होने की भयानक आवाज़ शून्य में डूबती गयी, इधर अनगिनत मानव-कण्ठों की चीत्कार तीव्र होती गयीं। छहसात डिब्बों से आग की भीषण लपटें उठ रही थीं। संकरी और गहरी खाईनुमा घाटी, टुकड़े-टुकड़े हुई पड़ी रेल का बेडौल अंटाला, पथराये हृदयों को भी चीरती आर्त पुकारें, जलती हुई मानव देहों की दुःसह दुर्गन्ध और समूचे अन्तरिक्ष को छोपे हुए अगम अन्धकार के अपार पंख ! सब मिलाकर कैसा बीभत्स, कितना डरावना था वह दृश्य ! रूपनारायण रेलगाड़ी के मृतकों, घायलों और उस समय भी मौत से जूझते मृत्युंजय | 179
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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