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"गारोगाँव वाली दोनों बन्दूकें तो वहाँ लौटा देना। शेष सारी बात वहाँ जयराम से कर लेना । समझ गये ?" ___ मधु ने हाँ की और भिभिराम के साथ मिलकर धनपुर को स्ट्रेचर पर लिटाने में जा लगा । हलका-सा झटका लगते ही धनपुर के मुंह से चीख निकल पड़ती। मगर धनपुर तो अब भी धनपुर था। पीड़ा को वह यों ही पी गया। किसी तरह बोला: ___"कॅली दीदी, तुम भी चलोगी साथ ?"
आगे-आगे चल रहा था आहिना कोंवर । उस बूढ़े के होंठ मानो सिल गये थे । पता नहीं कैसे इतनी भागा-दौड़ी और मानसिक चिन्ता-पीड़ा में भी वह नहीं
टूटा।
स्ट्रेचर को भिभिराम और मधु उठाये हुए थे। धनपुर कह रहा था :
"दधि, तुम उस चट्टान तक आगे बढ़ जाना । गोसाईंजी वगैरह रास्ता भूल भी सकते हैं । उन्होंने वहीं टिकने के लिए कहा था। बता देना उन्हें, मुझसे अब भेंट न हो सकेगी। मैंने अपना काम कर दिया। वे सब अपना काम पूरा करें। मौत की चिन्ता नहीं। जनता को संगठित करो। जनता में सैकड़ों धनपुर हैं । मैं अब..."
पीड़ा असह्य होती जा रही थी। भिभिराम कहने लगा :
"गोसाईंजी को बता देना, यदि नाव में हम सब जा सके हम लोग चले जायेंगे। तब उनसे भेंट होगी ही। और रूपनारायण को कहना कि यहाँ यखिनीखोर में टिकना अभी ठीक न होगा। रेलगाड़ी उलटी जाने के साथ ही मिलिटरी चप्पे-चप्पे की छानबीन करेगी। यखिनीखोर भी उनकी नज़रों से बचेगा नहीं। गोसाईंजी से यह भी कहना कि इस युद्ध में हार नहीं माननी है। देश में करोड़ों जन हैं । वे ही हमारी शक्ति हैं। डिमि को मैं बता जाऊँगा कि मेरी-उनकी भेंट कहाँ और कब होगी।"
कहते-कहते भिभिराम हाँफने लगा था। मधु और वह स्ट्रेचर संभाले हुए चट्टान की ओर बढ़ते जा रहे थे : पीछे कॅली दीदी थीं। सबसे पीछे था दधि मास्टर । कुछ देर बाद सब चट्टान के निकट पहुँच गये। मधु आदि बिना रुके आहिना कोंवर सहित नीचे की ओर उतरकर आगे बढ़ते चले गये । ___आकाश में तभी एक नक्षत्र चमक उठा । सोने-सा दीप्तिमान । दधि को बाँहों में भर कॅली ने उससे विदा ली :
"तुम डरना मत भइया ! गांधीजी की बात याद रखना कि भय मिट जाने पर ही मन को स्वराज्य मिल पाता है । ''तुम तो यहीं ठहरोगे।" ___कॅली के चले जाने के बाद दधि मास्टर एक बार को सिहर उठा। निश्चय ही कॅली दीदी के स्पर्श में कुछ था । उसके अन्तर में सचमुच ही एक निर्भयता जग
मृत्युंजय | 177