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पर कितना-कितना कुछ कहते हुए ! बोला :
"दूसरी कहाँ से बना लाओगी ? ऐसा प्राणी क्या बनाया जा सकता है ! हाँ, एक और सुभद्रा अब भी है। पता नहीं शहर से अभी लौटी या नहीं ?” कोई कुछ नहीं बोला।
धनपुर ने कहा : "कॅली दी, मुझे एक बार उसके पास ले चलो। इस अँधेरे में भी पुलिस को चकमा दे सकूंगा। मैंने उसके पास आने का वचन दिया था । वह प्रतीक्षा करती होगी । करेगा कोई साहस साथ जाने का ?"
आहिना कोंवर बोला :
"क्यों नहीं ? कृष्ण, कृष्ण ! बस स्ट्रेचर पर तुम्हारे पहुँचने भर की देर है, सब हो जायेगा । डिमि से भी भेंट होगी, और गुवाहाटी भी पहुँचोगे, कृष्ण-कृष्ण ! • बरुआ डॉक्टर तुम्हें अच्छा जो करेंगे ।"
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फिर वही निष्प्राण मुसकराहट धनपुर के होंठों पर उतर आयी : " गारोगांव ही ले चलो। साथ कौन जायेगा ? मधु ?" जाने के लिए सभी तैयार थे । धनपुर ने कहा : "दधि मास्टर यहीं ठहरें । गोसाईंजी आदि के लौटने तक।' दधि ने स्वीकार किया। उसके बाद सबको बताने लगा :
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" बन्दूकें आदि तुम सब लोग साथ लेते जाओ । रास्ते में ज़रूरत भी पड़ सकती है, सुन रहे हो न भिभि भैया । गारोगाँव से कुछ आगे थोड़ी दूर पर एकान्त घाट है । बलबहादुर को वहीं नाव रोकने के लिए कहना । वहीं डिमि को भी मधु बुला • लायेगा । सुना न मधु ! अरे, तुझे तो अभी भी ज्वर है ! अच्छा डिभि को सब बताकर मायङ चले जाना। पता नहीं लयराम वहाँ क्या कर रहा होगा ! किसी - नये बखेड़े की रचना न करे तो गोसाईंजी आदि को उसी के यहाँ छिपाकर रखना ठीक रहेगा ।"
"मगर यह रूपनारायण यहाँ यखिनीखोर में क्यों टिकना चाहता है ? मेरी - कुछ समझ में नहीं आता । जो हो, यहाँ अब एक पल नहीं रुका जा सकता। हर तरफ़ मिलिटरी तैनात कर दी गयी है । डिमि के यहाँ जयराम भी होगा । वहाँ से गोसाईजी के आश्रम आना। वहीं कहीं रहकर मायड के हाल-चाल लेते रहना । गोसाइनजी का तत्काल पता लगाना कि अब भी जेल में ही हैं या कहीं और । उनके पैर भारी हैं। मुझे चिन्ता लगी है । और हाँ, गोसाईंजी के आश्रम में शान्ति• सेना के कुछ लोग भी मिलेंगे । ये सब बन्दूकें उन्हें सौंप देना ।"
मधु खड़ा होते हुए बोला :
"नाव से उतरकर मैं अकेले इतनी बन्दूकें कैसे ले जाऊँगा ? कोई और साथ जायेगा क्या ?"
असमंजस में पड़ गया। कुछ क्षण बाद बोला :
176 / मृत्युंजय