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________________ छलाँग लगानी थी । वह रस्सी के सहारे धीरे-धीरे ऊपर चढ़ने लगा । इस बार उसका पैर थोड़ा खिसक गया, पर किसी प्रकार वह ऊपर चढ़ हो गया । ऊपर पहुँचते ही उसे ऐसा महसूस हुआ मानो उसका दाहिना पैर है ही नहीं। अब तक ढेर सारा खून बह जाने के कारण उसका सारा तन अवसाद से भर चुका था । उसने अपने गारो कुरते को खींचकर फाड़ लिया और दोनों हाथों से दाहिने पैर के घाव पर पट्टी बाँधने की चेष्टा करने लगा । ऊपर बैठे मधु को उसकी पीड़ा सह्य नहीं हुई । वह बोला : "रुको, मैं नीचे आ रहा हूँ। घाव को बाँधे देता हूँ ।" "नहीं । अभी तुम वहीं रहोगे। तुम्हारा काम अभी पूरा नहीं हुआ है, " धनपुर ने चिल्लाकर कहा । "घाव को तुम स्वयं बाँध लोगे ? खून बह रहा है," मधु ने आवाज़ दी । "बाँध सकूंगा या नहीं, यह मेरी बात है। तुम अपने काम पर तैनात रहो ।” धनपुर ने जोर देते हुए कहा । मधु आगे कुछ नहीं बोला। लेकिन धनपुर के लिए उसका मन छटपटा उठा : ओह ! ख़ास आदमी ही घायल हो गया है ! धनपुर ने घाव को बाँधने की फिर कोशिश की। साथ ही वह बोला : " मधु, गोसाईंजी का ध्यान रखना । कहीं फिर कोई आकर गोली न मार जाये ।" "अब इतनी जल्दी कोई नहीं आयेगा ।" मधु ने कहा । "मैं दोनों पहरेदारों को पहचान गया । ये दोनों पहलेवाले ही हैं । ये बड़े सतर्क थे । अन्यथा ये हथौड़ी की आवाज़ कैसे सुनते ? " "रोशनी रहने तक तुम वहीं रहना ।" धनपुर ने जताया । धनपुर की पीड़ा बढ़ती जा रही थी। वह घाव को एक बार फिर से बाँधने की कोशिश करने लगा । भीतर ही भीतर उसे सुभद्रा की याद आ रही थी । मनही मन वह डिमि के लिए भी पुकार रहा था । गोसाईं और भिभिराम ने उन मृतकों की देह पर से रायफल, खुकरी और गोली से भरी थैली उतार ली। दोनों शवों का सिर से पैर तक भली भाँति निरीक्षण किया । जेब में उनकी डायरियाँ और तस्वीरें मिलीं। उन सबको भी उन्होंने ले लिया । उसके बाद दोनों ने शवों को बारी-बारी से खींचकर पास की खाई में लुढ़का दिया और शीघ्र ही उसी स्थान पर लौट आये । धनपुर के खून से सनी लाल मिट्टी को गोसाईं ने खुकरी से खरोंच डाला । खून के निशान मिटाने के लिए उन्होंने सब प्रकार की चेष्टाएँ कीं । उसके बाद रस्सी के सहारे ऊपर चढ़ आये । भिभिराम पहले ही ऊपर आ चुका था । उसने आते ही धनपुर को पीठ के 166 / मृत्युंजय
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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