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________________ मंह पर हंसी खिल आयी। उसके घुटने से ख न बह रहा था, जिससे वहां की धरती लाल हो गयी थी। गोसाई ने धनपुर के हाथों में रस्सी थमाते हुए कहा : "धनपुर, इसी के सहारे धीरे-धीरे ऊपर चढ़ते चलो।" "चढ़ने के लिए इस टाँग में कुछ है नहीं," धनपुर हंसते हुए बोला। "दो आदमी मरे हैं। आप लोगों की गोली कारगर सिद्ध हुई। लेकिन उन दोनों की बन्दूकें उठा लानी चाहिए थीं । पहले आप दोनों बन्दूकें उठा लाइये।" तीव्र वेदना होते हुए भी धनपुर के चेहरे पर कहीं कुछ ऐसा नहीं लग रहा था । गोसाईं सचमुच आश्चर्य में डूब गये। बोले : ____ "तुम ऊपर चढ़ने के लिए थोड़ी कोशिश तो करो। यहाँ रुका नहीं जा सकता। हम किसी प्रकार से तुम्हें ले जायेंगे । भिभिराम, तुम ज़रा नीचे उतर आओ। इसे सहारा दो।" भिभिराम नीचे उतर धनपुर के पास आ गया। धनपुर ने भिभिराम की ओर देखा, उसके चेहरे का रंग उड़ा हुआ या। अनुताप से उसकी आँखें धंसी जा रही थीं। "मेरी बात न मानने के कारण ही तुम्हें गोली लगी है, धनपुर । यह गोली तो मुझे लगनी चाहिए थी।" भिभिराम की आँखों में आंसू छलक आये । धनपुर ने मुसकराते हुए कहा : "अब रोने से कोई लाभ नहीं । पहले दोनों बन्दूकें उठा लाओ। उनकी खुकरी और झोली को भी उठा लाना। जाओ, दोनों जल्दी जाओ। तुम्हारी आँखों के आँसू अब कुछ काम नहीं करेंगे, लेकिन वे बन्दूकें काम आयेंगी। जाओ, जल्दी करो । ट्रॉली कभी भी आ सकती है। जाओ न ! और हाँ, उन लाशों को खाई में ढकेल देना । जल्दी करो। गोसाईं प्रभु ! आप भी जायें । जाइये न प्रभु, रुके क्यों हैं ? वहाँ दुश्मन का नामोनिशान नहीं रह जाये।" "तुम"तुम उठ सकोगे या नहीं?" इस बार गोसाईं के कथन में आदेश का स्वर था। धनपुर ने एक बार गोसाईं के मुंह की ओर देखा और बोला : . "हाँ, उठ सकूँगा । धनपुर की शक्ति अटूट है, वह अभी मरा नहीं है। आप लोग अपना-अपना काम करें।" गोसाई ने फिर आदेश के स्वर में कहा : "ऊपर चढ़ जाओ। हम बन्दूकें लाने जा रहे हैं।" वे भिभिराम के साथ दोनों मृतकों के पास जा पहुंचे। धनपुर ने रस्सी के सहारे ऊपर चढ़ना शुरू किया। पहले तो वह अपने घायल पैर को उठा भी नहीं सका । तब एक बार ख ब ज़ोर से रस्सी के सहारे छलांग लगाकर काफ़ी ऊपर तक चढ़ गया। पीड़ा के मारे अपनी दायीं टाँग को वह हिलाडुला भी नहीं पा रहा था : वेदना से उसका मुंह अब विकल हो गया था। किन्तु तब भी उसकी इच्छा-शक्ति अदम्य थी। ऊपर चढ़ने के लिए अब सिर्फ एक बार मृत्युंजय | 165
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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