SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 171
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बल लेट जाने को कहा। उसके दाहिने पैर के घुटने के नीचे पिण्डली में लगी गोली के घाव का भिभिराम ने अच्छी तरह निरीक्षण किया और उसके ही फटे कुरते से उस पर अच्छी तरह पट्टी बाँध दी। उसके घाव के पास टूटकर उभर आयी हुई हड्डी पर गोसाई की नज़र गयी। उन्होंने पूछा : __ "क्या गोली अन्दर ही है ? लगता है, हड्डी चूर हो गयी है।" "नहीं, गोली निकल गयी है।" धनपुर ने कहा । वह क्षणभर चुप रहा । फिर बोला : “इन रायफलों को बाँट दें। एक मुझे दीजिये, दूसरी भिभि भाई को। लेकिन भिभि तो रायफ़ल चलाना जानते ही नहीं। तो भी ले लें। काम ही आयेगी। लाइये मैं गोली भर देता हूँ। हो सके तो सीख भी लीजिये। मेरे पिताजी ने तैरना सिखलाते समय पहले-पहल कपिली के पानी में मुझे फेंक दिया था। डूबने के डर से मैं तैरना सीख गया। मुसीबत में पड़कर आप भी रायफल चलाना सीख जायेंगे।" __ "एक बन्दूक तो मेरे हाथ में है ही। पहले एक-दो बार बन्दूक चलायी थी। देखू इसे भी चला सकता हूँ या नहीं।" भिभिराम हाथ में बन्दूक लिए धनपुर की बग़ल में आ गया। धनपुर ने रायफ़ल खोलकर देखी। उसमें गोलियाँ भरी थीं। उन्हें चलाना भर है। फिर उसने भिभिराम को रायफल चलाने का तरीका बताया-कन्धे को ठीक से नहीं बचाने पर चलाने वाले को ही उलटकर गिरने की आशंका रहती भिभिराम ने बड़े ध्यान से वह सब समझ लिया । बोला : "बचपन में कामपुर वाले गोसाईजी की बन्दूक चलाने भी बात मुझे याद है। ...'ज़रूर चला सकूँगा"फिर बिना चलाये तो चलने की नहीं; अब तो चलाना ही पड़ेगा। फ़िशप्लेट ख द न खोल सकने का परिणाम तो सामने ही है । तुम्हारे दाहिने टाँग की पिण्डली गोली का शिकार जो बन गयी..." गोसाईं ने घड़ी देखी। गाड़ी के आने में अब ज्यादा देर नहीं थी। सूरज धीरे-धीरे अस्ताचल की ओर बढ़ता जा रहा था । अभी भी उनकी मुद्रा गंभीर बनी हुई थी। बोले : ___ "मधु, तू नीचे उतर आ । अब तुम्हारा वहाँ कोई काम नहीं है । रूपनारायण अभी वहीं रहे। ट्रॉली के न आने तक वह वहीं रुका रहे।" मधु नीचे उतर आया। एकदम बन्दर की तरह। नीचे आकर वह धनपुर के पास जाना चाहता था, लेकिन गोसाई उसे आहिना कोवर के पास ले गये । गोसाईं यों ही नहीं बुलाते, कोई-न-कोई बात अवश्य है। आहिना कोंवर चुपचाप भगवान का नाम ले रहा था। गोसाई को आते देख मृत्युंजय | 167
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy