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________________ निकल जाती। पर ऊँचा-नीचा रास्ता : सावधानी रखते भी झटका कभी-कभार लग ही जाता । दो-एक बार तो उसके कपड़े भी और रंग-रंग गये। __ "एकाएक कॅली दीदी ने आँखों में आँखें डालते हुए पूछा, 'तुझे मरने से तो भय महीं लगता रे ?' मैंने उत्तर दिया, 'मरने से भय किसे नहीं लगता दीदी ? मगर न्याय और सच्चाई के लिए मरना पड़े तो उसके लिए तैयार हैं।' कॅली दीदी हलके से हंस दी, 'ठीक कहता है भइया। भगवान ने तुझे साहस भी दिया है, हृदय भी।' सुभद्रा की ओर देखती हुई बोलीं फिर, मैं सहारा दूं क्या कुछ देर के लिए ?' मैंने कहा, 'नहीं, मैं ले चलूंगा। मगर यह है कौन दीदी ?' "कॅली दीदी चलते-चलते हठात मिट्टी के एक ढ़हे पर बैठ गयीं। बुझी-बुझी आवाज़ में उनके मुंह से निकला, 'उसी बूढ़ी की बेटी है । कताई और बुनाई में अत्यन्त निपूण | घर-घर जाकर कातना और बनना सिखाती रहती है। हर तरफ़ की ख़बरें भी उसमें इसे मिल जाती हैं। मैंने कई बार सावधान किया था : इन कलमुंहे फ़ौजियों की आँख पहले से ही इस पर थी। मेरी बात को कान नहीं दिया। ईश्वर पर बहुत भरोसा था इसे । क्या कर लिया ईश्वर ने अब !' धनपुर चलते-चलते एक स्थान पर रुका । पीक थूककर थोड़ी दूर पर दिखाई देते एक दलदली चप्पे की दिशा में संकेत करता हुआ कहने लगा : ___"इधर ही है शायद लुइत का कछार ! सुनते हैं बहुत ही उपजाऊ है यह समूचा खण्ड । यह भी सुना जाता है कि अनगिनत नेपाली और मैमनासिंही आआकर इधर बस गये हैं।" भिभिराम ने बताया कि मैमनासिंहियों को तो स्वयं सरकार ने लाकर बसाया है। कारण कि मुसलिम लीग वाले यहाँ से असम को पाकिस्तान के साथ जोड़ देना चाहते थे। ___"यह तो लीग के पुरखे भी नहीं करने पाते।" ख़खारकर गला साफ़ करते हुए माणिक बॅरा बोला। ___ धनपुर ने एक और बीड़ी सुलगाई । कहने लगा : "हमारे भी हल सँभालने का समय आ गया अब । कपिली से यह कलङ्ग का कछार ज्यादा उपजाऊ है । ढिंग से लेकर यहां तक का समूचा अंचल उर्वर मिट्टी से भरा हुआ है और दलदल कहीं नाम को नहीं ...।" कोई सपना जैसे आँखों में तिर आया हो ! बोला आगे : "स्वाधीनता मिल जाने के बाद इधर ही खेती जमाऊँगा। कामपुर में तो मेरे पास एक बित्ता भर भी जमीन नहीं। भइया तो गोसाईजी के यहाँ से अधबटिया पर गुजारा कर लेता है, देखता मैं ही रह जाता हूं। वैसे भी कपिली में हर साल ही तो बाढ़ आती है। कोई तो उसके कोप से बच नहीं पाता !" भिभिराम सुभद्रा वाली घटना का शेपांश सुनने के लिए उत्सुक था । धनपुर मृत्युंजय | 13
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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