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नाहर का पौधा लग रही थीं। भय तो उस युवती को छू तक नहीं पाया था।
"हठात् चलते से वे रुक गयीं। बोली : 'एक बड़ी भूल हो गयी धनपुर !' जानने के लिए मैंने उनकी ओर देखा । उन्होंने बताया, 'सुभद्रा की मां के पास तो एक अधेला भी नहीं। थोड़ा-सा धान था, सो मिलिटरी वाले भर ले गये। कुछ रुपये दे आती तो उसे सहारा होता । पर यहाँ तो मेरे पास भी कुछ नहीं । इधर यह भी लग रहा है कि यह डरपोक डॉक्टर इस बेचारी को भी देखेगा या नहीं। यों आदमी बुरा नहीं।' ___"मैंने कहा, 'मेरे पास थोड़ा-बहुत है, दादी को दे आयें ?' सोचती हुई वे बोलीं, 'चल, अभी तो इधर ही चल । उन नासपीटों में से कहीं कोई मिल गया तो फिर सर्वनाश ही समझ ।' ___ "मैं समझा नहीं । इसलिए पूछा । दीदी ने लाज-शर्म को जैसे बलात् एक
ओर ठेलकर बताया, 'देखता नहीं इस अबोध का हाल ! और दो-पाँच नहीं तीसतीस जन ! फ़ोजी ! मेरी पोर-पोर दहक उठी है । पर कैसे बदला लिया जाये, यही बराबर सोच रही हूँ । पुल उड़ाना क्या बदला लेना हुआ !'
"पूछा मैंने, 'तब ?" 'उनका उत्तर था, 'युद्ध करना होगा । चीन जैसा युद्ध ।'
"मैं उनका मुंह ताकने लगा । बोलीं वे, 'अखबार नहीं पढ़ता है क्या? चीन जिस तरह जापान से युद्ध कर रहा है वैसा युद्ध ! सभी कहीं तो मचा है युद्ध । कल बारपूजिया में भी यही सोचा गया है ! अब तो गोली-बन्दूक और हथगोलों की जुगाड़ करके गॅरिला फ़ोज का संगठन करना है।'
धनपुर ने दोनों साथियों की ओर देखते हुए कहा : ।
"मैं जानता न था गरिला का क्या अर्थ होता है। इसलिए दीदी से पूछा। मीठी झिड़की के साथ उनका उत्तर आया, 'तेरा सिर ! अर्थ तो मैं भी नहीं जानती, पर मुख्य बात है छिप-छिपकर इन दुष्टों के साथ अविराम युद्ध करना। गोली-बारूद जमा करके-' कॅली दीदी कहने से एकबारगी रुक गयीं । मेरे मुंह की ओर देखती हुई बोलीं, 'पर खबरदार, कहीं जो एक शब्द भी मुंह से निकला। अपनों तक के आगे नहीं । ऐसी बातों के लिए दीवारों तक के कान हुआ करते हैं। समझा !" ___ "मैंने उन्हें विश्वास दिलाया। फिर सोचने लगा। मुझे जान पड़ा कि सचमुच ऐसा ही कुछ हमें करना होगा।" ___ माणिक बॅरा ने लक्ष्य किया कि भिभिराम की मुखमुद्रा गम्भीर हो आयी है। पछने को हुआ वह, पर धनपुर आगे बताने लगा था : ____ "थोड़ी देर कॅली दीदी और मैं चुपचाप चलते रहे । सुभद्रा को मैं कन्धे से लगाये बाँहों पर संभाले हुए था । जरा-सा झटका लगते ही बेचारी की चीख-सी
12 / मृत्युंजय