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________________ से आँख लगाये बैठी हैं। कोई जो मानुख का जाया इधर आया हो । तू जैसे देवता रूप आ गया बेटा !' कॅली दीदी से बोली, 'पर इसे ले कैसे जाओगी? हालत तो देख ही रही हो।' लड़की सचमुच ढही जैसी पड़ रही थी। "कॅली दीदी मेरा मुंह जोहने लगीं। मानो पूछ रही हों : ले चल सकोगे उठाकर? छह मील का रास्ता है। - "मेरी दृष्टि लड़की की ओर गयी। आँखें अब भी मुंदी हुई थीं। घुटी-घुटी कराहें बराबर निकल रही थीं। चेहरा कॅली दीदी से भी सुन्दर । पर एकदम जैसे निचोड़ दिया गया हो। अंगलेट इकहरी..." कहते से एक पल को कहीं खो रहा धनपूर । बोला फिर : "डिमि को तो जानते हो भिभि भइया ! वैसी ही थी यह भी। पिण्डलियाँ तक उसकी जैसी । कॅली दीदी को मैंने संकेत किया : ज़रूर ले चलूँगा दीदी। बूढ़ी को आश्वस्त करते हुए बोलीं वे : सुभद्रा का भार अब मुझ पर दादी; मगर उन दुष्टों को भी शिक्षा दे सकू तब तो!" ___"बूढ़ी के भर आये कण्ठ से निकला : 'बेटी, इसे फिर देख तो पाऊँगी मैं ? मेरा यही तो सर्वस्व थी। हाय, कैसी लुट गयी मैं !' ___ "कॅली दीदी ने धीरज बँधाया, 'देख क्यों न पाओगी दादी ! सब ठीक हो जायेगा। चलूं अब।' "मुझसे उस लड़की को संभालकर उठाने को कहा। मैंने पूरी सावधानी रखी। फिर भी सुभद्रा की चीख निकल ही गयी। शायद कहीं पेट दब गया था। उसकी सारी देह तप रही थी। ज़रूर तेज़ ज्वर था। पीड़ा और लाज के मारे आँख नहीं खोल रही थी। उँगलियाँ तो उसकी देखते ही बनती थी : पतली-पतली लम्बी । बारपूजिया की लड़कियां होती भी सुन्दर हैं,...एकदम छरहरी।" भिभिराम की कमर पर एक गमछे का फेंटा कसा हुआ था। उसी के एक छोर में पान और चने-तमाखू की डिबियाँ लिपटी बंधी थीं। भिभिराम ने खोलकर एक पान निकाला और चूने-तमाखू सहित मुंह में दिया। फिर तो माणिक ने भी माँगा और धनपुर ने भी । बीड़ी फेंककर पान चबाते हुए धनपुर ने आगे कहना शुरू किया : "सुभद्रा की देह से कच्ची मछली जैसी बास आ रही थी। कभी-कभी तो इतनी असह्य हो उठती कि नाक पर रूमाल रखना पड़ता। कॅली दीदी चलते रास्ते को छोड़कर काँस के झुंडों में से होती हुई अगली बस्ती के निकट पहुँची और वहाँ से सीधा रास्ता पकड़कर आगे बढ़ चलीं। दोपहर हो आया था । कलड्. के किनारे-किनारे हम दोनों चुपचाप चले जा रहे थे। उनके हाथ में एक पोटली थी जिसमें एक कटार उन्होंने छिपा रखी थी। चारों ओर जंगल में नाहर के सुन्दर-सुन्दर पौधे दिखाई दे रहे थे। सच तो, कॅली दीदी स्वयं एक गतिमान मृत्युंजय | 11
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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