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________________ रूपनारायण ने आखिरी कश लेकर सिगरेट फेंक दी। फिर बन्दुक उठाकर खड़ा होते हुए बोला : "तुम्हारी योजना के अनुसार ही काम होगा। मोड़ पर की फ़िशप्लेटें निकाली जायें तो कैसा रहेगा ?" "मैंने भी वहीं का निश्चय किया है, लेकिन भिभिराम को थोड़ा और आगे चलकर वहाँ खोलने के लिए बताया है । खाई के ठीक बग़ल में, जिससे गाड़ी सीधी उसी में गिरे। निश्चित समझो कि गाड़ी के वहाँ उलटने पर कोई भी नहीं बचेगा। सब के सब एक ही जगह गिरेंगे। अगर पिछला डिब्बा भी बचा रह गया तो भी अपने ऊपर मुसीबत आये बिना नहीं रहेगी। मेरी समझ में गोसाईंजी यदि थोड़ा नीचे उतरकर यहीं रुकें तो बहुत अच्छा होगा। नीचे छिपने की भी जगह है । जगह थोड़ी गीली जरूर है। पर और कोई उपाय भी तो नहीं है।" ___ हठात् धनपुर की दृष्टि पास ही जमीन पर पड़ी उस रस्सी पर जा अटकी। वह हँस पड़ा । बोला : "इसे किसने बाँधा है ? यह तो फाँसी की रस्सी जैसी लगती है।" "रस्सी नीचे लटका दो आहिना कोंवर", गोसाई जी ने कहा । धनपुर ने आहिना को बड़े गौर से देखा। फिर मुसकराते हुए कहा : ___"अरे वाह, आज तो आप भी क्रान्तिकारी-जैसे लगते हैं । बड़ा अच्छा हुआ। आप यहीं बैठें। इच्छानुसार घोषा-पद गाया करें। हाँ, ज़रा एक पान-बीड़ा तो दीजिये, मुंह खट्टा-खट्टा हो रहा है।" __ आहिना कोंवर के चेहरे पर इस बार हँसी खिल उठी। उसने अंगोछे की गांठ खोलकर पान के दो बीड़े निकाले । एक धनपुर को दिया और दूसरा मधु की ओर बढ़ा दिया । तभी धनपुर ने पूछा : "आप लोगों को आने में इतनी देर क्यों हुई ?" "दधि और कॅली, दोनों आ गये थे," गोसा ईजी ने बताया। "क्यों?" धनपुर की दृष्टि स्थिर हो गयी । “वह मायङ छोड़कर क्यों आया ?" उसके चेहरे पर सन्देह की रेखा उभर आयी। "नहीं आता तो करता भी क्या? लयराम को शइकीया गिरफ्तार कर ले गया। नाविक को भी पकड़कर ले गया है। पुलिस गाँव वालों को पकड़कर ले गयी है । अब तक तो वे हमारी खोज में इस जंगल में भी आ घुसे होंगे।" इतना कह गोसाईजी बन्दूक उठाकर खड़े हो गये। दो दिनों की बीमारी ने ही उन्हें पूरी तरह तोड़ दिया था। गाल, मुंह सब पिचक गये थे। मुंह तो दाढ़ी के बीच जैसे धैंस ही गया था। सूखकर पूरी तरह चुनौटी हो गये थे। सब कुछ महसूसते हुए भी धनपर कुछ बोला नहीं । यह सहानुभूति प्रकट करने का समय तो है नहीं। उसने टिप्पणी की : 156/ मृत्युंजय
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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