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________________ से ही अब तक इन्हें चूर्ण बना दिया होता। मैं तो बस, इतना ही जानता हूँ, कृष्ण । " गोसाईं को हँसी आ गयी। सरलता के कारण ही संसार में जटिलता इतनी आकर्षक होती है । मालगाड़ी वहाँ से पार हो बहुत दूर आगे जा चुकी थी । रूपनारायण लौट आया और गोसाई के पास ही एक पत्थर पर बैठ गया । उसने एक सिगरेट जला लो । उसका मुख बड़ा गम्भीर दिख रहा था मानो बहुत दूर तक की सोच रहा हो वह । "क्या देखा ?" गोसाई ने पूछा । "मालगाड़ी मोड़ पर बिलकुल गोलाकार हो गयी थी। इसी मोड़ के बीचोंबीच फिशप्लेटें खोलना अच्छा रहेगा । उसके पास वाली खाई में उतरकर भागने के लिए एक सँकरी पगडण्डी भी मैं देख आया हूँ । शायद अपने साथियों ने भी वहीं कहीं की फ़िशप्लेटें खोलने का निर्णय किया है । रास्ता भी बना लिया होगा । इस ओर की खाई से लाइन तक की ऊँचाई कुछ अधिक है । खाई उधर भी है, पर इतनी गहरी नहीं । बड़ा ही सुविधाजनक स्थान है। कौन कहाँ रहेगा, यह सब भी देख रखा है । मैं उधर खाई के उस पार रहूँगा । नीचे अँधेरा है । वहाँ से सूर्य का प्रकाश भी दिखलाई नहीं पड़ता है।" तभी किसी के आने की आहट सुन पड़ी जानी-पहचानी-सी । धनपुर और मधु वहीं आ पहुँचे । मधु के कन्धे से बन्दूक़ झूल रही थी। दोनों की दाढ़ी बढ़ आयी थी। पास आकर धनपुर बोला : " मैंने ठीक ही अनुमान किया था कि आप लोग यहीं होंगे। काम में जुटने का समय हो गया है । गश्तीदल थोड़ी देर पहले जा चुके हैं। अधिक से अधिक दस मिनट हुए होंगे। मिलिटरी एक्सप्रेस के आने के पहले ट्रॉली आ सकती है । उसके आने तक हमें रुकना नहीं चाहिए। ट्रॉली में भी मिलिटरी वाले ही होते हैं। उसके आने के पहले ही हमें काम पूरा कर लेना होगा। मोड़ पर आते ही ट्रॉली लुढ़क जायेगी। सभी ट्रॉलीवालों को गोली मारकर काम तमाम कर देना होगा। इसमें चूक नहीं होनी चाहिए, नहीं तो किया-कराया सब चौपट हो जायेगा ।" धनपुर काले रंग का चुस्त गारो कुर्ता पहने हुए था । उसने झोले से एक बड़ा रिच निकाला और बोला : "मैं उतरकर उस तरफ़ जा रहा हूँ । गोसाईजी इसी ओर रहेंगे । भिभिराम को वहीं उतार आया हूँ । मधु पेड़ पर रहेगा। इस पर नहीं, उधर एक बढ़िया सा पेड़ है । उसी पर बैठ वह गश्तीदल पर नज़र रखेगा । और रूपनारायण, तुम उधर थोड़ा आगे बढ़कर रहोगे क्या ?" "हाँ ।" मृत्युंजय / 155
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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