SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 158
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आज वही विदेशी सेना और उनके लिए रसद ढो रही हैं। इसका मतलब है गोरे साहबों के व्यापार की सुरक्षा । “सोने के अण्डे देने वाली इस चिड़िया पर बलपूर्वक अधिकार किये रहने की इन्होंने शपथ ले रखी है । रावण की तरह प्रण कर रखा है इन्होंने। तभी तो हमें राम की प्रतिज्ञा दोहरानी पड़ी है : 'निसिचर हीन करौं मही' । यह देश, इस देश की सम्पदा, इस देश का शासन - सब कुछ अपने हाथों में लेना पड़ेगा । मिलिटरी ढोनेवाली इस रेलगाड़ी को उलट देने से कुछ सैनिक तो मरेंगे ही। इससे कुछ नहीं तो हमारे गुरिल्ला वीरों का मनोबल अवश्य बढ़ेगा । निपूत रहने से कुपूत का होना बेहतर है । गोसाई इस बार जमकर बैठ गये थे । कन्धे की बन्दूक सँभाली ही थी कि उन्हें रेलगाड़ी की निकट आती हुई आवाज़ सुनाई पड़ी। उन्होंने एक बार बायीं ओर नज़र दौड़ायी । लगा कि धनपुर वग़ैरह भी रेलगाड़ी पर नज़र टिकायें हैं । चारों ओर बड़ी सावधानी से अवलोकन के बाद वे निश्चिन्त हुए और पान की पीक फेंकते हुए बोले : " मशीन अपने आप में निर्जीव होती है, हमारा शोषण करने के लिए कर रहे हैं। बता है ?” I कोंवर । ये गोरे लोग इसका प्रयोग सकते हो, इस गाड़ी में क्या गया "क्या ?" "युद्ध का साज-सामान । यह मालगाड़ी थी। मेरा अनुमान सही है । मणिपुर के पास भीषण लड़ाई चल रही है । चमड़ी उधेड़ी जा रही है इनकी । तब फ़ौजी गाड़ी पलट देने से तो इनका और भी बुरा हाल हो जायेगा । आप नातीपोते वाले आदमी हैं, फिर भी एक बात याद रखेंगे। इन्हें देश से निकाले बिना हम शान्त नहीं बैठेंगे । इनका सारा अधिकार हम अपने हाथों में लेकर ही रहेंगे । भगवान का नाम भर लेने से ही संसार से मुक्ति नहीं मिल जाती । इन्द्र को बन की आवश्यकता पड़ती है । मेघनाद को पुष्पक विमान की ज़रूरत होती है । हनूमान को लंकादहन भी करना पड़ता है। हमें भी अग्निबाण चाहिए। आज हम यह अग्निबाण ही छोड़ने का कार्य कर रहे हैं। मरकर भी हमारी पराजय नहीं होगी । हमारी ये माटी की हड्डियाँ भी दधीचि की अस्थियों की तरह वज्र बनकर इनका नाश किये बिना नहीं रहेंगी ।" आहिना कोंवर ने कुछ कहा नहीं । ऐसी गम्भीर बातें उनके पल्ले नहीं पड़ती। पान का बीड़ा मुंह में डालकर फिर खुरदन को झोले में रखता हुआ वह बोला : "अब सैनिक तो बन ही गया हूँ। जब तक यह खुरदन हाथ में रहेगा तब तक तो लडूंगा ही, हे कृष्ण । यदि ये लोग पान-सुपारी होते, हे कृष्ण, तो इस खुरदन 154 / मृत्युंजय
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy