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"उसे मार डालना चाहिए था । एक व्यक्ति के कारण सब कुछ चौपट हो गया। आप सबको धोती छोड़ लहंगा पहन लेना चाहिए। ख़ैर, जो हुआ सो हुआ । यह तर्क करने का समय नहीं । गोसाईजी, आप जरा सावधान ही रहेंगे । गश्ती दल के आदमी दीखें तो बिना पूछे ही गोली मार देंगे। फ़ौजी गाड़ी आने तक हमें सावधान ही रहना होगा ।"
" ठीक ही कहते हो," रूपनारायण बोला । "हमें किसी प्रकार लौटकर गुफा तक पहुँचना होगा । अब हमारा अन्तिम आश्रय वहीं होगा । अपने बिखरते हुए इस युद्ध की नयी व्यूह रचना हमें वहीं बैठकर करनी होगी ।"
"हमारी यही कोशिश होगी" कहते हुए धनपुर ने पूछा, "लेकिन कॅली दीदी क्यों आयी थी ?
अपनी बढ़ आयी दाढ़ी पर हाथ फेरता हुआ रूपनारायण बोला :
"हमें अपना यह काम न करने के बाबत कामपुर के गोसाईजी ने एक पत्र भिजवाया था। बड़ा भीषण निर्देश था उसमें ।"
"कैसा निर्देश ?"
! " इस काम से हमें विरत हो जाने को कहा गया था ।" "कारण ?"
"कारण कुछ भी नहीं । मन टूट गया है, और क्या ? सब-के-सब गिरफ़्तार जो हो गये हैं । केवल हाजारिका ही बाहर बचा है ।"
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सुनकर धनपुर खिन्न हो गया । बोला :
"ऐसे लोग ही नेता हैं । कलेजा कच्चा है । ये सब केवल देखने के लिए ही हैं। ख़ैर छोड़ो इन बातों को । कॅली दीदी क्यों आयी थी ?"
"इसलिए कि कहीं हमारे विचार भी ढुलमुल न हो जायें। बता रही थी कि वह हर दिन सूत कातती है, लेकिन उसकी तकली में आज तक कभी गुलझट नहीं पड़ी । कामपुर के गोसाईंजी वाली चिट्ठी कहीं हम सबके विचार उलझा न दे, यही सोचकर चली आयी थी ।"
"चलो, अभी भी एक महिला तो है जिसका विश्वास किया जा सकता है । और भी कुछ कहती थी क्या ?"
गोसाईजी थोड़े गम्भीर हो आये । बोले :
"नहीं, और विशेष कुछ नहीं बोली।" फिर एकाएक समय का ध्यान आते ही बोले, "चलो, अब हम सब अपने-अपने काम में जुट जायें। बातें तो बाद में भी होती रहेंगी ।"
गोसाईंजी की ओर देख धनपुर चुप हो गया। सुभद्रा की ख़बर सुनने के लिए उसका मन बेचैन था। सुभद्रा ! कहीं उसे तो नहीं कुछ हुआ ?
रस्सी के सहारे धनपुर नीचे उतर आया। उसके पीछे रूपनारायण । थोड़ी
मृत्युंजय | 157