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________________ उस समय भी गोसाई ने कोई उत्तर नहीं दिया था। वह चुप हो रहे थे : अभी से क्या कहा जाये ! इसलिए रूपनारायण ने जब गुप्त शिविर के संचालन की बात शुरू की तो वह अपनी सहमति नहीं दे पाये। उनके इस नकारात्मक रवैये पर रूपनारायण और धनपुर झुंझला भी उठे और ताव खाकर चुप रह गये। भिभिराम और आहिना कोंवर भी कोई निर्णय नहीं ले पाये। दोनों एक-दूसरे का मुँह ही ताकते रहे। ____ आहिना कोंवर रूपनारायण के पास आकर खड़ा हो गया। उसके मन-से सफ़ेद बाल और चेहरे पर उग आयी दाढ़ी धूप में झिलमिला उठी । पान चबाते हुए बोला : ___ "नया अड्डा बनाने की अभी कोई ख़ास ज़रूरत नहीं । पहले यह महाभारत तो निपटा लें । कृष्ण-कृष्ण ! फिर देखा जायगा। जेल भुगत रहे साथियों की सलाह भी तो चाहिए । तुम तो जानते ही हो, जितने मुंह उतनी बातें..." रूपनारायण झुंझला उठा, "आप लोगों में साहस नाम की चीज़ ही नहीं । फिर सही काम पूरा कैसे होगा! एक ओर गांधीजी के आदर्शों की दुहाई देते हैं, लेकिन उस पर चल भी नहीं पाते। दूसरी ओर हिंसा की लड़ाई भी नहीं लड़ी जाती आपसे । इसी तरह उधेड़-बुन में पड़े रहियेगा तो हमारे पास जो भी समय बचा है, हम उसका भी उपयोग नहीं कर पायेंगे।" ___ रूपनारायण को अपनी उग्रता पर दुख तो था लेकिन वह क्षुब्ध भी था। कहने लगा : ___ "यह अवसर हमारे हाथ से निकल गया तो हम अपने दुश्मनों को फिर कभी खदेड़ नहीं सकेंगे। इस समय भी हम नहीं चेत पाये तो हमारा देश-प्रेम ढोंग के सिवा कुछ भी नहीं रह जायेगा।" रूपनारायण की आँखें आकाश में टंगी थीं। हालाँकि आकाश शान्त हो चुका था। हवाई जहाज़ ओझल हो चुके थे। पीली धूप धीमी पड़ गयी थी और दिन बोझिल हो चला था। ____ गोसाई अब भी खों-खों किये जा रहे थे। उनकी यह बीमारी अलग परेशानी बनी हुई थी। आहिना कोंवर ने असंतोष प्रकट करते हुए रूपनारायण की बात का जवाब दिया,"हे कृष्ण! अब हड़बड़ी में सारा काम एक साथ निपटाया भी तो नहीं जा सकता।" ____गोसाई उठ खड़े हुए। उन्होंने बिना किसी की ओर देखे आग बुझायी, और फिर अधजली लकड़ियाँ और राख झरने में फेंक आये। कन्धे पर बन्दूक टाँगे वह भी सामने आ गये। उनका चेहरा भी दाढ़ी-मूंछ से भर गया था। भोजन के पहले आपस में जो बहस उन गयी थी, उससे सभी के मन में एक तरह की बेचैनी जग उठी थी। यह बहुत अच्छा नहीं हुआ था, लेकिन उस समय उसे टाला भी 138/ मृत्युंजय
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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