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________________ से मार गिराया जा सकेगा। यदि उन लोगों के हाथों में भी बन्दूकें रहीं तो वे भी इन सब पर गोली चलायेंगे ही। पर सबको तो कहाँ मार सकेंगे? ज्यादासे-ज्यादा एक या दो को। फिर गोली चलने की आवाज़ सुन छावनी से कुमक को आते-आते दो घण्टे से अधिक का समय तो लग ही जायेगा । तब तक तो मिलटरी एक्सप्रेस गाड़ी उस स्थान पर जरूर आ पहुँचेगी। रेलगाड़ी के उलटने पर फिर कौन मरता है, कौन जीता है, कौन पकड़ा जाता है-इस बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता। "चलने का वक्त हो गया है।" रूपनारायण ने आवाज़ लगायी। उसकी इस आवाज़ में उसके भीतर का उमड़ता गुस्सा भी बाहर आ निकला। गोसाईं इसका कारण समझ रहे थे। कई-एक हवाई-जहाज़ आसमान में बार-बार चक्कर काटकर इस जंगल की टोह ले चुके थे। यह और बात थी कि उनकी नज़र झरने की इस चट्टान पर न पड़ पायी हो। शायद वे पास की फ़ौजी छावनी तक रसद पहुंचाने आये हों और अब लौट रहे हों। पर उनका आना-जाना अब भी रुका कहाँ था ! रूपनारायण ने उन्हें एक दूसरे का पीछा करते हुए भी देखा था। शायद बमबारी करनेवाला जो जापानी जहाज गुवाहाटी की ओर चला गया था, मित्र-देशों के जहाज़ ने उसे खदेड़ दिया हो। जहाज़ से पांच बार गोली छोड़ने की आवाज़ भी सुन पड़ी थी। इसलिए रूपनारायण ने सबको आगे भेज दिया और यहाँ उसको मिलाकर कुल तीन जन रह गये थे। रूपनारायण युद्ध की कार्रवाई और तैयारियों से भी क्षुब्ध था। मायङ के लोगों के बारे में वह जैसा सोचता था, दरअसल वे सब वैसे न थे। गुरिल्ला-वाहिनी के गठन के लिए न तो कोई योजना ही थी और न योग्य संचालन । वह सोच रहा था : गुप्त शिविर-संचालन की दृष्टि से यह स्थान बहुत ही उपयुक्त है । पास ही दो बड़ी गुफाएं हैं । वह वापसी के समय यहीं टिकना चाहता था। लेकिन गोसाईंजी इसके लिए तैयार न थे। आहिना कोंवर ने भी कुछ न कहा । न 'हाँ' न 'ना' । गोसाईंजी के अनुसार बिना दूसरे साथियों से विचारविमर्श किये कोई काम नहीं किया जा सकता। __ दूसरे और साथी हैं कहाँ । सब तो जेल में हैं । रेलगाड़ी उलटने के बाद छिपने के लिए कोई ढंग की जगह भी तो नहीं। मायङ तो शइकीया की मुट्ठी में है। लयराम ने क्या कहा और जयराम ने क्या किया, इसका भी तो पता नहीं चला। बस तीन घण्टे की ही तो बात है। अगर इतनी देर भी सुरक्षित रहे तो बहुत है। उसके बाद जो होगा, देखा जायेगा। हम सब इन दोनों गुफाओं में बने रह सकते हैं । किसी में इतनी ताक़त नहीं कि हमें यहाँ आकर पकड़ सके। यहीं छुपा रहना ठीक होगा। रूपनारायण ने गोसाईजी से कहा भी था कि अब पीछे लौटने का उपाय नहीं। हम यहीं रहकर गुरिल्ला-वाहिनी का गठन कर सकते हैं। मृत्युंजय | 137
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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