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________________ आठ mommam आहिना कोंवर ठहरा यथार्थवादी व्यक्ति । खा-पीकर उसने हाँड़ी को झरने के एक पत्थर से दे मारा और धार में बहा दिया । और फिर निश्चिन्त होकर एकान्त मन से एक पद गाने लगा : कृष्ण-कृष्ण जप अन्तकाल में, जो तजते हैं अपने प्राण। वही नाम ही कर देता है उन सबका दुनिया में त्राण ॥ लेकिन किसी ने भी उस पद की ओर कान नहीं दिया। झरने के नीचे की ओर एक लम्बी-चौड़ी समतल चट्टान पर पत्तलें बिछाकर सभी खिचड़ी खा चुके थे। कन्धे पर बन्दुक टाँग रूपनारायण खड़ा हुआ। उसने सूरज की ओर मुख किया। सूरज झुक आया था। लेकिन उसकी किरणों ने अभी भी अपना तेज नहीं छोड़ा था। रूपनारायण का नाटा क़द, गोल-मटोल मुंह, बढ़ी हुई दाढ़ी, ओड़हुल के फूल की तरह लाल-लाल आँखें, बिखरे हुए बाल और किसी उद्दण्डी की नाईं ललाट पर क्रोध की खण्डित रेखाएँ-सब कुछ स्पष्ट हो उठे थे। ___मुख धोकर वहाँ से चलने की तैयारी करते ही गोसाईजी को खांसी आने लगी । खाँसी रुकती हुई न देख वे फिर वहीं चट्टान पर बैठ गये । आहिना कोंवर ने बुझती हुई आग को थोड़ा कुरेद दिया और तब गोसाई उसके पास जा अपनी छाती सेंकने लगे। ___ मधु और धनपुर कुछ पहले ही जा चुके थे । शायद वे रेलवे लाइन के निकट पहुँच भी गये होंगे। अब सिर्फ तीन जन रह गये थे। भिभिराम भी बढ़ गया था। बीहड़ जंगल में यह स्थान कुछ खुला हुआ लगा। पास ही, जंगली हाथी और बाघ के पैरों के चिह्न दिखे। वे यहाँ पानी पीने आते होंगे। कहीं रास्ता न भूल जायें, इसलिए जाते समय मधु रास्ते में खूटे गाड़ता गया था। नियेत स्थान यहाँ से अब आधा मील भी नहीं रह गया था। उस समय रूपनारायण की घड़ी में दो बज रहे थे। सूरज ढलते ही काम पूरा कर लेना होगा। गाड़ी आने को तब भी एक घण्टा रह जायगा । बात तो तब है जब इस बीच गश्ती दल इस ओर न आये । और यदि आ ही जाय तो उसके सभी आदमियों को गोली से भून देना होगा। इसके सिवा और कोई चारा नहीं। दो बन्दूकों से चार लोगों को आसानी
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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