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________________ परवाना है।" बलबहादुर ने नाव खोल दी। पतवार से कपिली की धारा को काटते हुए उसने नाव आगे बढ़ानी शुरू की। पानी के भीतर चमक रहा चाँद टूट-टूटकर छिटकने लगा । चाँद के टुकड़े रोहू मछली की चोई की तरह चमकने लगे । ठण्डी हवा लगने से गोसाई को खाँसी आ गयी, लेकिन जिस-किसी तरह से उसे उन्होंने रोक लिया। - धनपुर ने एक बीड़ी सुलगा ली। देखादेखी औरों ने भी बीड़ियाँ पीनी शुरू कर दी। ___ आधे घण्टे के भीतर ही नाव बंगाली बस्ती वाले घाट पर जा लगी। माणिक बॅरा ने कहा : ___ "बलबहादुर, तुम अब लौट जाओ । नाव यहीं पर छोड़ जाना, समझे न ! हमें रात में ही फिर पार होना होगा। अब तुम यहीं तैयार मिलना । ज़रूरत हुई तो सीटी बजाना । समझ गये !" बलबहादुर : गठीले क़द का गोरा-चिट्टा और सुन्दर युवक । बोला वह : __ "किसी प्रकार की फ़िक्र मत करना । निश्चिन्त होकर जाओ । और हाँ, नाव यहाँ नहीं रखेंगा। यहाँ से इस ओर थोड़ी दूर आगे नदी में बालू पड़ी है, वहीं पर रहेगी नाव । वहीं आना । जाओ डरना नहीं। हम यहाँ तुम लोगों के भागने-छुपने का सारा बंदोबस्त कर रखेंगे । गारोगाँव में तुम्हारे कौन आदमी धनपुर ने बलबहादुर को एक बीड़ी बढ़ाते हुए कहा : "लो, पीओ। गारोगाँव में एक महिला से हमारी पहचान है, समझे। उसका नाम है डिमि । उसे ही पूछने से हो जायेगा।" अच्छा-अच्छा ! वह तो बड़ी भली औरत है ।" बलबहादुर बोला। “एक ही औरत यदि लायक हो तो सौ आदमियों का काम करती है ।" वह हंसने लगा। ___ नदी के किनारेवाली राह पर धीरे-धीरे बढ़ते हए यात्री ओझल होते गये। बलबहादुर भी नाव लेकर लौट आया। और तभी पूरव के सूरज ने कपिली को अपना एक चुम्बन जड़ दिया। मृत्युंजय / 135
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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