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की तरह आगे बढ़ता हुआ दीख रहा था । और उड़ते हुए केश--मानो काले बादल उसका रास्ता रोकने के लिए ही उससे आगे निकल जाना चाह रहे
थे।
___ कुछ दूर आगे बढ़ने पर सीटी की एक आवाज कानों में पड़ी । सब-के-सब और भी सतर्क हो गये । रूपनारायण ने कहा :
"लगता है किसी अपने ही आदमी ने सीटी बजायी है, घाट आ गया क्या?" ___"घाट अभी थोड़ी दूर है ।" माणिक बॅरा ने बताया, "सीटी किसी नेपाली ने ही बजायी है, लेकिन है यह किसी मुसीबत का ही संकेत । निश्चय ही इधर कहीं पुलिस या उसके भेदिये हैं। धान के खेत की ओट हो हमें कुछ देर तक उसका अन्दाज़ कर लेना चाहिए। यही ठीक रहेगा।" इतना कह वह धान के खेत की आड़ में चित्त हो सो गया। रूपनारायण भी लेट गया और सीटी जिधर से आयी थी, उसी दिशा में उसने अपनी बन्दूक तान ली। धीरे-धीरे और सब भी वहीं एक आड़ लेकर लेट गये।
थोड़ी देर बाद ही दो पुलिसवाले दिखाई पड़े। वे नदी के किनारेवाली राह पर धीरे-धीरे बातें करते चले आ रहे थे। सबकी नजरें उन्हीं पर जम गयीं। दोनों बातें करते हुए चले आ रहे थे। सबकी नजरें उन्हीं पर जम गयीं। दोनों बातें करते हुए सीधे आगे बढ़ गये। उनकी बातें कान खड़े कर सभी ने सुनने की कोशिश की, पर कुछ भी किसी के पल्ले नहीं पड़ा। कुछ ही मिनटों में वे दोनों काफ़ी दूर निकल गये। नदी के किनारेवाले जंगल से उनके ओझल हो जाने पर ही गोसाई वगैरह उठकर खड़े हो सके।
सब मिलकर तेज़ी से नाववाले घाट की ओर बढ़ चले । आकाश में अब चाँद का प्रकाश क्षीण हो चुका था। भोर से पहले ही कपिली को पार कर जाना ज़रूरी था। नहीं तो किसी भी क्षण मुसीबत आ सकती थी।
घाट पर नाव तैयार थी । उसमें बैठा नाविक बीड़ी का कश खींच रहा था। वह उन्हीं की प्रतीक्षा कर रहा था। माणिक बॅरा ने आवाज़ दी, "बलबहादुर, नाव खेने के लिए तैयार हो जाओ।"
बालू पर चलते सभी उसकी ओर बढ़ गये । गठरी-पोटरी सँभाल सबके नाव में बैठते ही बलबहादुर बोला :
"पुलिस आयी थी। मेरी सीटी सुनाई पड़ी थी न ?" ____ "हाँ।" माणिक बॅरा ने उत्तर दिया। "क्यों आयी थी वह ? उसने कुछ पूना तो नहीं?"
"आप सबकी ही खोज में थी। शायद पुलिस को कुछ अन्दाज़ हो गया है । एक को गोसाईजी और धनपुर का नाम लेते भी सुना। शायद गिरफ्तारी का
134 / मृत्युंजय