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________________ कपिली के किनारे वाले खेतों की मेंड पर से बढ़े जा रहे थे। हवा के हलके झोंके से धान की बालियाँ हिल रही थीं। तभी पास ही कहीं से खरखराहट की आवाज़ हुई । सुनते ही धनपुर के सूने अन्तस् में पैठी सिसकी और भी दुगनी बढ़ गयी। और जब वहाँ नहीं समा सकी तो निकलकर बाहर की हलकी चाँदनी से मिल चारों ओर दूर तक फैल गयी। यहाँ तक कि कपिली की धारा में भी जा मिली। किसी ने मछली पकड़ने के लिए कपिली में जाल डाल रखा था। नाव की छप-छप् आवाज़ आ रही थी। सब-के-सब सावधान हो गये । "बहुत ही होशियारी से आगे बढ़िये।" धनपुर ने कहा।..."और हाँ, बन्दूक भी संभाल लीजिये । ज़रूरत हुई तो गोली चलानी होगी। नाव मछली मारनेवालों की भी हो सकती है और पुलिस की भी।" धनपुर ने फुसफुसाहट के स्वर में ही यह बात कही थी पर सुन ली थी सभी ने और सतर्क भी हो गये थे। नाव की छपछपाहट की ओर ही सभी के कान लगे रहे। उजान की ओर जा रही थी वह नाव । उसके दूर निकल जाने पर जब आवाज़ सुनाई पड़ना बन्द हो गया, तभी सबने फिर से घाट की ओर बढ़ना आरम्भ किया। चारों ओर गम्भीर नीरवता थी। कपिली की धारा क्षीण हो चुकी थी। पानी तब भी कुहासे के कारण अच्छी तरह नहीं झलक रहा था। चाँदनी में कपिली की धारा एक उजले पहाड़ी साँप की तरह पड़ी दीख रही थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो वह मनुष्य की हताशा, या चिर विरह का बहता हुआ स्रोत हो । कलङ, कपिली और उचुपनी–तीनों वहीं आकर मिली हैं । एक नया संगम बन गया है वहाँ। छोटी-छोटी चिड़ियाँ चहचहा रही थीं। कितनी ही चिड़ियों की चहचहाहट थी वह। मानो वे सब सवेरा होने का अनुमान पा उसकी वन्दना कर रही थीं । तभी एक मछरंगा नदी में एक डुबकी मारकर फिर से ऊपर उड़ गया। आदमी के पैरों की आहट पा, खेतों पर फैली चाँदनी में झिलमिलाती धान की सुनहली बालियों के बीच से हंसों का एक झुण्ड भी ऊपर की ओर उड़ गया। "यहाँ झील भी है क्या ?" भिभिराम ने धीरे से पूछा। "हाँ, एक झील है", आहिना ने उत्तर दिया। "यहाँ बहुत सारे हंस आते हैं शिकार करने के लिए। कई बार आया हूँ यहाँ, हे कृष्ण ।" सभी की नज़रें खेतों की ओर जा अटकी । लगा, जैसे वे सो रहे थे-एक राजकुमारी की तरह निश्चिन्त होकर। राजकुमारी : जिसे जगाने के लिए कोई राजकुमार आया ही नहीं । कब आयेगा, कोई नहीं कह सकता। आहिना कोंवर आगे-आगे चल रहा था। ऊपर आकाश में चाँद भी मशाल मृत्युंजय ! 133
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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