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छैल-छबीलों और मज़ाकिये युवकों पर उनकी नज़रें अधिक रहतीं और वे सब भी मानो यही सब चाहते होते, समझे न ! किसी युवती के हाथों से दही खाने का मौक़ा पाना क्या कम भाग्य की बात है फिर वे केवल दही खाकर रह जाते हैं क्या ? उस युवती को भी तो वे खिलाते हैं। रोहा के डॉक्टर ने गोसाईं जी की जिस लड़की से ब्याह किया है, उसने भी एक ऐसे ही मौके पर डॉक्टर को दही खिलाया था । उस समय पढ़ ही रहा था, पास नहीं हुआ था ।"
इस बार गोसाई के खाँसने की आवाज़ आयी । रोकना चाहकर भी खाँसी को रोक नहीं सके वे । अगहन महीने की अन्तिम रात थी वह । कुहासे से ढकी कपिली के उस पार के खेत साफ़-साफ़ नहीं दिखाई दे रहे थे । जंगल के बीच लकड़हारों की आने-जाने से बनी पगडण्डी पर खाँसी की आवाज़ फैलकर ख़ामोश हो गयी । गोसाईंजी अण्डी चादर से अपनी छाती ढके हुए थे । नोक्मा के घर से उठ रही ढोल की आवाज़ अब भी उनके कानों में गूंज रही थी । नाम-कीर्तन के साथ इस नाच-गाने का कोई मेल नहीं । नाम-कीर्तन करनेवाले को तो भगवान के सामने स्वयं को समर्पण कर देना होता है। लेकिन यह बँगला उत्सव तो बिल्कुल बिहु के समान है । नाचते-नाचते लोग आँगन तक हिला देते हैं। साथ ही, इसमें एक प्रकार की मस्ती भी आ जाती है । स्त्री-पुरुषों को मिलजुलकर एक ताल और लय में नाचते देखकर किसी का भी हृदय हिलोरें मारने लगता है । कोई समाज इस प्रकार भी चल सकता है, इसकी कल्पना उन्होंने स्वप्न में भी नहीं की होगी । उच्च कुल के संस्कारों के अनुसार स्त्री-पुरुषों के ऐसे सामूहिक नृत्य और गीतको सहज और स्वाभाविक नहीं माना जाता लेकिन आज उन्होंने जिस नृत्यगीत को देखा है, वह तो सर्वथा सहज और स्वाभाविक है ।
थोड़ी देर पहले डिमि ने भी नृत्य किया था, गाया था और उत्सव में अपने को बिलकुल तन्मय कर रखा था । इससे उसका कुछ भी तो नहीं बिगड़ा है ; वह दूषित भी तो नहीं हुई है । वह अपने कर्तव्य का पालन करती हुई बिना किसी संकोच के हम सबके साथ घूम रही है। धनपुर के साथ उसने सब प्रकार की बातें करने में भी कोई संकोच नहीं किया तब भी उसने अपनी सीमा का उल्लंघन कभी नहीं किया । सचमुच, वह सती-साध्वी है। चहारदीवारी के अन्दर रहकर सती - साध्वी होना सहज है । चहारदीवारी के बाहर मैदान में निकल आने पर किसी के द्वारा तनिक छू दिये जाने पर ही वे लाजवन्ती लता की तरह सिमट जाती हैं । उनके ठीक विपरीत है डिमि । बाहर खुले में अपने चित्त पर क़ाबू रखती हुई fsfa बिलकुल मेम साहिबा की तरह दिखती है । सचमुच, डिमि साध्वी है ।
खाँसी आने के साथ-साथ गोसाईजी का मन पुलकित हो उठा। उनकी इच्छा गोसाइन से मिलने की हो आयी । वे उनसे मिलकर यह बताना चाहते थे- 'इस तरह बाहर निकल आना अच्छा ही हुआ है । अब बाहर निकलकर एकदम डिमि
128 / मृत्युंजय