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________________ "तुम्हें एक गारो कुर्ता देने को कहा था न । रुको, अभी लाती हैं।" वाहर की चाँदनी बेड़े की बनी दीवारों के छिद्रों से आकर लोगों के चेहरों पर पड़ रही थी। डिमि अन्दर चली गयी और एक काले रंग का गारो कुर्ता लाकर धनपुर को देती हुई धीरे से बोली : "तुम फिर आओगे न?" झिलमिलाती चांदनी में उसकी सजल आँखें चमक उठी थीं। "अवश्य आऊँगा।" धनपुर मुस्कराता हुआ बोला। "यदि सुभद्रा न आयी तो तुम उसके पास ज़रूर जाना । मेरे सपने की बात याद है न ? उसे भी बताना। और यहाँ शकरकन्द, सन्तरे और अच्छी सनलाइट सिगरेट जमा कर रखना। एक रात यहीं रुकुंगा, किन्तु खबरदार, रोना मत !" डिमि की आँखों से आंसू बह चले । किन्तु कमरे के अन्दर चाँदनी का प्रकाश कुछ मद्धिम होने से कोई किसी का मुंह अच्छी तरह देख नहीं पा रहा था। केवल डिमि के सिसकने की आवाज़ सुनाई पड़ रही थी। धनपुर ने ढाढस बंधाते हुए कहा : "क्यों रोती हो? तुम क्या छोटी बच्ची हो?" "नहीं तो, लेकिन सहा भी नहीं जाता। भला तुम कैसे-कैसे काम में लगे हो?" डिमि के आँसू मानो हिरणी के आँसू बन गये थे। ___ "काम चाहे जो भी हो, सब बराबर के होते हैं, डिमि। यों किसी-किसी में मौत हो जाने का अंदेशा अधिक होता है और किसी में कम। इसलिए दु.ख मत करना।" तभी गोसाई एकाएक चिन्तित स्वर में बोल उठे : "माणिक वॅरा आदि की सूचना कैसे दी जाये? हमें यह पता कैसे चलेगा कि वे लोग घाट तक पहुँचे या नहीं?" । इस बार आँसू पोंछकर डिमि कुछ संयत हो गयी । बोली : "माणिक बॅरा और उनके साथी नेपाली बस्ती में रहेंगे, इसलिए उनका पता करना कठिन नहीं होगा। लेकिन अब और देर होने पर कपिली को पार करना मुश्किल हो जायेगा। उन दुष्टों की नजर यदि कपिली घाट पर पड़ गयी तो आप सब-के-सब मारे जाओगे। मैं एक चालाकी कर आयी हूं। उन पुलिसवालों को भोजन करने पत्तलों पर बैठा आयी हूँ। भोजन और नान में अगर वे मग्न हो गये तो आप लोगों की चिन्ता टल जायेगी। कपिली पार करने में तब परेशानी नहीं होगी । एक घड़ा मदिरा भी रख आयी हूँ।" डिमि की न केवल बुद्धि बल्कि अपने प्रति उसका झुकाव देखकर सब के सब मुग्ध हो गये। 126 / मृत्युंजय
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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