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________________ "लड़ाई के मैदान में सेनापति तो कोई दिखाई नहीं पड़ते। सबके सब जेलों में हैं । लड़ाई के मैदान में यदि सेनापति न रहे तो क्या किया जायेगा? इसलिए उनके आदेश के लिए प्रतीक्षा करने से कोई लाभ नहीं होगा। सैनिक जो भी निर्णय लेंगे, सेनापति को वही मानना होगा। इसके सिवा और कोई चारा नहीं।" ___ रूपनारायण कुछ कहना चाह रहा था, तभी दरवाजा खोलकर डिमि अन्दर आ गयी। उसके हाथ में हल्दी, नमक वगैरह की पुड़ियाँ थीं। गोसाईं के हाथ में सौंपती हुई धीरे से बोली वह : "पुलिस आयी है।" उसके चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रही थीं। "कितने हैं ?' गोसाई ने संभलते हुए पूछा। "चार जन हैं।" डिमि ने उत्तर दिया। "आप लोग यहाँ से निकल जाइये। पिछवाड़े से एक रास्ता है। चलिथे, उसे आप लोगों को दिखला दूं। यहाँ पकड़ लिये जाने की आशंका है।" सबने चुपचाप अपना-अपना सामान उठा लिया। गोसाईं ने मधु को जगाया। आँख मलते हुए उसने आश्चर्य से पूछा : "चलने का समय हो गया क्या?" "हाँ ! पुलिस आ गयी है । गठरी और बन्दूक संभालकर जल्दी निकलो।" मधु झटपट उठ बैठा। दहकती आग को गोसाईंजी ने बुझा दिया। अब केवल दीपक का प्रकाश ही वहाँ रह गया था। सब के जाने की तैयारी कर लेने के साथ ही रूपनारायण ने जेब से कुछ काग़ज़ निकालकर डिमि के हाथों में थमाते हुए कहा : "सुनो डिमि, इन सबको तुम नगाँव के हमारे कार्यालय मे जाकर जमा कर देना।" "तुम लोगों का ऑफ़िस कहाँ है ?" __ "कलङ के किनारे वही बरुवाजी का घर। वहीं जाकर दे देना। बरुवाजी से कहना कि रूप ने दिये हैं।" काग़ज़-पत्र ले डिमि ने उन्हें शयन-कक्ष में ही कोने में पड़े एक बक्से में चुपचाप रख दिया। फिर उसने पूछा : "बरुवा का मतलब वही न, जिनके घर में नगाँव जाने पर हम लोग टिकते "हाँ । उन्हीं के यहाँ।" "तब मैं दे आ सकूँगी। अब चल दो।" वहाँ से अधजली लकड़ियाँ हटाकर डिमि अन्यत्र रख आयी। गोसाई, रूपनारायण और मधु तीनों ने कन्धे से बन्दुकें लटका लीं। धनपुर अपनी गठरी ले खड़ा हो गया । भिभिराम भी जाने को तैयार हुआ। इसी बीच डिमि धनपुर की ओर इशारा कर बोल उठी : मृत्युंजय | 125
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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