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और बीहड़ है। ब्रह्मपुत्र के रास्ते किसी तरह गुवाहाटी तक पहुँचा जा सकता है। लेकिन वहाँ पहुँचकर भी क्या होगा ! वहाँ भी मिलिटरी पीछे पड़ी होगी।" ____ "मुझे नहीं लगता कि इस तरह भागते रहने से कोई लाभ होगा। अच्छा होगा यदि हम अपने सारे ज़रूरी काग़ज़ात या दूसरी चीजें डिमि के पास छोड़ दें। वह उन्हें किसी तरह नगाँव पार्टी कार्यालय तक पहुँचा देगी।" रूपनारायण आनेवाले वक्त को पहचान रहा था । आगे बोला, "बर्मा से जिस तरह अंग्रेजों को खदेड़ दिया गया, ठीक उसी तरह उन्हें यहाँ से भी निकालकर बाहर करना होगा। इसके लिए केवल रेल की पटरियों को उखाड़ फेंकने से काम नहीं चलेगा। आस-पास के गांवों में जाकर वहाँ के लोगों को एकत्रित कर गुरिल्ला फ़ौज भी खड़ी करनी होगी। विदेशी फौजियों को क़दम-कदम पर परेशान करना होगा। अन्यथा कुछ पाने की आशा नहीं कर सकते। इतने दिन बीत गये, आई०एन०ए० के साथ हमारा सम्पर्क भी न हो पाया। खैर, हमें अपना संगठन मजबूत करना चाहिए।"
धनपुर रूपनारायण की बातें सुन रहा था। उसको याद ही नहीं रहा कि उसकी उँगलियों में फंसी बीड़ी बुझ चुकी थी। बोला :
"रूपनारायण, मैं तुम्हारी बात को कुछ दूसरे ढंग से सोच रहा था।" "वह क्या ?" रूपनारायण मुस्कराया।
"हम अहिंसा-अहिंसा चिल्लाते-चिल्लाते ही मरे हैं। खाली जेल भरने से कुछ भी नहीं होने का ! अब ऐसे नेताओं से काम नहीं चलेगा।"
इस बार किसी ने कोई जवाब नहीं दिया। प्रश्न बड़ा ही जटिल था। रूपनारायण उठकर बैठ गया । वह धनपुर की ओर देखते हुए बोला :
"मेरी धारणा भी यही है। जयप्रकाश नारायण ने जेल से भागकर अच्छा ही किया है । लोहिया द्वारा लिखित पुस्तिका 'विप्लवी आगे आयें' पढ़कर मेरी यह धारणा और भी पुष्ट हो गयी है। समय भी बुरा हो चला है । छात्र-छात्राओं में से भी कुछएक तो स्कूल-कॉलेजों की ओर फिर लौटना चाह रहे हैं । गुवाहाटी, नगाँव, जोरहाट, कलकत्ता-जैसे शहरों में लोग पहले की तरह काम करने लगे हैं। कल-कारखाने चल रहे हैं। इन लोगों को जब तक विप्लव की ओर मोड़ते नहीं तब तक हमारा अभियान सफल नहीं होगा। अब तक हमने जो कुछ किया है, वह तो बस उछल-कूद ही है। इससे आगे बढ़कर काम करने से ही कुछ हो सकेगा।" ___ गोसाई ने गम्भीरता से कहा, "हम सैनिक हैं। हमारे सेनापति क्या कहते हैं, हमें उसकी प्रतीक्षा करनी होगी।"
धनपुर तमतमा उठा। बोला :
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124/ मृत्युंजय