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________________ कौन चाहेगा भला ? धनपुर की बातों का उत्तर दिया केवल रूपनारायण ने । उसने कहा था - "देखो धनपुर, तुम्हारा तर्क सही है । किन्तु लयराम को अपने साथ मिलाकर चलना हो हमारा प्रधान लक्ष्य होना चाहिए। कितनी मेहनत और परेशानी के बाद, एक योग्य कार्यकर्त्ता तैयार हो पाता है। इसलिए अब उसे यों ही छोड़ देना उचित नहीं । उधर लयराम भी डर गया था । इसीलिए तो हमें वह बन्दूक़ न देकर, शइकीया के साथ मिलकर रहना चाहता था। तुम तो जानते ही हो कि वह मछली का व्यापार करता है, धान का व्यापार करता है—यह सब वह कैसे छोड़ देगा ? धन का लालची तो है ही, वह औरत का भी लोभी है । एक कार्यकर्ता को ये सारी चीजें कमजोर बना देती हैं। जो भी हो, आख़िर लयराम अपना पुराना सहयोगी है। इसलिए हमें निराश नहीं होना चाहिए, समझे धनपुर ! मेरे विचार से तो शइकीया के हाथ में पड़ने से पहले उसे अपना सहयोगी ही बनाने की अन्त अन्त तक कोशिश करनी चाहिए। यही अपना कर्तव्य है । इस काम के लिए गोसाईजी किसी आदमी को भेजें तो अच्छा रहे ।” उसने आगे कहा था : "यह कहना भी भूल है कि यों निहत्थे हो जेल जानेवाले या बलिदान हो जानेवाले हमारे मन को केवल साहस ही दे पाते हैं । सच कहें तो वे भी योद्धा हैं, उनकी लड़ाई भी एक योद्धा की लड़ाई है। कमलागिरि का ही उदाहरण लोन ! सच है कि वह अस्त्र-शस्त्र से नहीं लड़ा, किन्तु इसमें दो मत नहीं हैं कि वह सत्य के मार्ग से कभी नहीं डिगा । वह अन्त तक जूझता ही रहा । बचपन से ही वह कांग्रेस के काम में लगा था। जनता का समर्थन और साथियों के मनोबल ही युद्ध में बहुत बड़े सम्बल होते हैं। बीमारी से भले ही वह मर गया लेकिन सरकार से क्षमायाचना कर जेल से छूटने की बात उसके मुँह पर कभी नहीं आयी । इसलिए मैं समझता हूँ कि लयराम के बारे में अन्तिम निर्णय करने के पहले हमें उसे शइकीया के हाथ में नहीं जाने देने की बात भी सोचनी चाहिए ।" धनपुर ने रूपनारायण की बात मान ली थी। तब उसने कहा था : "इस काम के लिए अब चुना किसे जाये। काम मेरे जाने पर भी बनेगा और जयराम के जाने पर भी, लेकिन जाना भी अब कम मुसीबत से भरा नहीं है । पुलिस से बचकर ही जाना होगा । मेरे जाने पर इधर काम रुक सकता है । इसलिए जयराम ही जायेगा । अपनी मृत्यु-वाहिनी के विचार, अनुरोध, निर्णय जो भी हैं, वहाँ जाकर वह लयराम को बतायेगा । उसके बाद भी, यदि वह नहीं मानता है तो परिणाम स्वयं भोगेगा ही ।" प्रस्ताव सबको मान्य हुआ था । सबकी इच्छा जान जयराम ने कहा था : "ठीक है, मैं ही जाऊँगा । खाना खाकर सीधे चल दूंगा । यहाँ नेपाली बस्ती के तीन-चार साहसी व्यक्तियों को हमने मिला रक्खा है । वे कल से ही कपिली घाट और गोवर्द्धन पर जलाऊ लकड़ी काटने के मिस चौकसी कर रहे हैं । आप लोगों 120 / मृत्युंजय
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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