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के उधर से न लौटने तक वे चौकसी रखेंगे। वे आप को कपिली के पार पहुँचा देंगे और लोटती बार पार होने के लिए उधर ही किसी सुविधाजनक स्थान पर नाव छोड़ आयेंगे। वह स्थान बंगाली बस्ती से दो मील सीधे पूरब की ओर पड़ेगा। उन्होंने वहाँ पगडण्डी भी बना रखी है। हम बंगाली बस्ती भी गये थे। वहाँ मैननसिंही और नामशूद्र लोग बसे हैं। बड़े सरल और भोले-भाले हैं वे लोग। गोवर्द्धन पहाड़ के ठीक नीचे ही वह गाँव है । प्रस्तावित घटना स्थल से वहाँ तक लौटने के लिए एक सीधा लेकिन बड़ा कठिन पहाड़ी रास्ता है। जंगली हाथी, बाघ उसी रास्ते से नीचे उतरकर आते हैं । काम पूरा हुआ कि उसी रास्ते से ही लौटना होगा । मेरे ज़िम्मे फ़िलहाल इतना ही काम था। इसे मैंने पूरा कर दिया है। आगे माणिक बॅरा रहेंगे ही। हाँ, मेरे ज़िम्मे एक और काम था, रास्ता दिखाकर ले जाना और फिर वहाँ से लौटा लाना। वह काम अब आहिना कोंवर करेंगे। आप का क्या विचार है ?"
धनपुर ने ही कहा था, "लेकिन आहिना को हम कमारकुची आश्रम में भेजना चाहते हैं। वहाँ भी तो एक आदमी चाहिए।" भिभिराम का मत था कि वैसा करना अभी अच्छा नहीं होगा। जयराम ने भी विस्तारपूर्वक बताया था कि आहिना को कमारकुची भेजना क्यों ठीक नहीं होगा। उस ओर का व्यक्ति न होने के कारण वहाँ का रास्ता ढूंढ़ना उसे ही कठिन हो जायेगा। __ जयराम की बात सभी ने मान ली थी।
जयराम, माणिक बॅरा और आहिना कोंवर को यहाँ से निकले अभी अधिक देर नहीं हुई थी। उनके जाने के बाद ही गोसाई मकरध्वज पीसने बैठे। उनकी खाँसी पुनः बढ़ गयी थी। लेकिन कल दिन-भर तो खाँसी को रोककर रखना ही पड़ेगा। विध्वंस के इस कार्य के लिए सन्नाटा बनाये रखने को कितनी ज़रूरत होती है । खाँसने भर से मुसीबत खड़ी हो सकती है। शत्रु को भेद भी मिल सकता है।
कल किस व्यक्ति के ज़िम्मे क्या काम रहेगा, धनपुर यही सब सोच रहा था। सच तो यह है कि काम का ठीक-ठीक बँटवारा हो जाये तो काम पूरा करने का आधा बोझ तो वैसे ही कम हो जाता है। उसने कहा : ___ "कोंवर पर रास्ता दिखाने का काम सौंपना ख़तरे से खाली नहीं है। उसे अफ़ीम की डिबिया यहीं छोड़ जाने के लिए कहना था। अन्यथा कहीं रास्ते में ही अफ़ीम खा बैठे तो फिर क्या हाल होगा?"
रूपनारायण को हँसी आ गयी। बोला :
"हाँ, यह बात तो बिल्कुल सही है । पर अब अफ़ीम खाने के लिए समय ही कहाँ मिलेगा उसे ?"
"न खाये यह और बात है। लेकिन कहीं खा ली और काम में असफल हो
मृत्युंजय | 121