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________________ उलटना तो दूर, साँस लेना भी दूभर हो जायेगा। इसलिए न चाह कर भी दधि के निर्णय से ही सबको सहमत होना पड़ा। हाँ, आहिना की आँखें जरूर भर आयी थीं । उसका हृदय बहुत कोमल है। भिभिराम, जयराम, माणिक बॅरा और रूपनारायण सभी चुप बैठे थे। उनमें से धनपुर ही ऐसा था जो अपने मत पर दृढ़ था। उसका साफ़-सीधा कहना था : "लड़ाई तो बस लड़ाई ही है। उसमें लड़ना-मरना तो होता ही है। दया-ममता ही दिखानी हो तो फिर औरतों के पल्लू में छिपकर घर में ही बैठना चाहिए।" बात ठीक ही है। क्या हमारे दुश्मन हम पर रहम खा रहे हैं? वे ऐसा सोचेंगे भी क्यों ? आहिना शास्त्र, भगवान और गांधीजी की दुहाई दे-देकर लयराम के साथ ऐसा कुछ न करने की प्रार्थना कर रहा था। उसकी प्रार्थना से माणिक बॅरा का दिल भी पिघल गया। धनपुर के अलावा, सभी भगवान से डरनेवाले हैं। ऐसे लोग, जो जीव-हिंसा के लिए भी एक नहीं दस बार सोचते हैं, अपने किसी पड़ोसी की हत्या करने का भला कैसे निर्णय ले सकेंगे ? धनपुर इन सबकी अनुनय-विनय-भरी बातों से खीज उठा था। उसने तमककर कहा था : "आप लोग सोचते क्यों नहीं ? अगर लयराम शइकीया के हाथ पड़ गया तो रेलगाड़ी उलटने की सारी योजना धरी रह जायेगी। वह फ़ौज़ी दस्ते के साथ इधर आ हम सबको जानवरों की तरह मार डालेगा। और इस तरह यदि हम लोग अकाल मौत मारे गये तो समझ लो कि यह सारा आन्दोलन भी ठप्प हो जायेगा और क्रान्ति बीच में ही दम तोड़ देगी। ____ "आजादी तो जब आयेगी तब आयेगी, अभी तो चारों ओर से बुरी-बुरी ख़बरें आ रही हैं। कुछेक लोगों के जेल चले जाने या वहाँ घुट-घुटकर जान देने से भी कुछ नहीं होगा। हमारे बलिदान का भी कोई अर्थ होना चाहिए, क्योंकि हमें अपनी आज़ादी भी चाहिए। कुशल कोंवर, कनकलता, कमला गिरि, तिलक डेका आदि का बलिदान हमें हमारे लक्ष्य की ओर बढ़ने का आह्वान है। हमें दुगने उत्साह से अपने संकल्प के साथ बढ़ना है। केवल साहस से ही कुछ नहीं होगा। ललित ने अपने मामा की हत्या की । क्यों ? वह देश के प्रति अपने कर्तव्य को जानता था। गदाधर सिंह अपनी पत्नी जयमती पर होनेवाले दुराचार और फिर उसकी मौत को चुपचाप देखता रहा। इसके बाद कहीं वह लरा राजा का सामना करने का साहस जुटा सका था। मैं ख द युद्ध की नीतियों से परिचित नहीं -लेकिन जितना कुछ सीख गया हूँ, बाधा और विपत्तियों से टकराकर ही।" __ किसी में इतना साहस नहीं हुआ कि वह धनपुर के तर्क को काटे । प्रायः सभी के भीतर अपनी-अपनी मौत का भय समा गया था। उस पर भी अंगरेज़ों को खदेड़ने की इस योजना को अमल में लाने में अपनी दुर्बलता को जाहिर करना मृत्युंजय | 119
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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