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________________ सात ढोलक की थाप और सींगे की धुन पर युवक-युवतियाँ अब भी नाच रहे थे । बड़े-बूढ़े थककर बैठे थे । डिमि के घर में बैठे गोसाईजी मकरध्वज वटी खल रहे थे । मधु बिछावन पर पड़ा खर्राटे ले रहा था । उसे लौटे हुए अभी अधिक देर नहीं हुई थी । रूपनारायण, भिभिराम और धनपुर बातचीत में मग्न थे । माणिक बॅरा, जयराम और आहिना कोंवर नेपाली वस्ती गये हुए थे- खाना खाने के लिए। वहाँ से पूरी तरह तैयार होकर ही आने की बात थी उनकी । गोसाई अण्डी का चादर ओढ़कर चटाई पर बैठे थे । मकरध्वज कूटते हुए उन्हें गोसाइन का असहाय चेहरा बार-बार याद हो आ रहा था। साथ ही साथ सोच रहे थे कि कमारकुची आश्रम में इस समय चाँदनी के सिवाय शायद और कोई प्रकाश नहीं होगा । अन्दर जाड़े से सिकुड़ी-सिमटी महिलाएँ अलाव जलाने का साहस भी न जुटा पायी होंगी। वहाँ चारों ओर भयावह सन्नाटा होगा । गाय अब भी बछड़े के लिए रँभा रही होगी। आहिना के वहाँ जाने की बात थी, पर वह भी जान सका । उसे भी रोक लिया है। क्या पता कब क्या काम आ जाये । इधर माय से आये आदमी शइकीया द्वारा ढाये जा रहे अत्याचारों की बात बता रहे थे । जिस किसी के घर की तलाशी ली जा रही थी। पुलिस और मिलिटरी 'जवान, लयराम की खोज में आकाश-पाताल एक किये दे रहे थे । जिस घर में लयराम को छिपाया गया था, शाम तक पुलिस उसका पता नहीं लगा पायी थी । लेकिन शायद अब काफ़ी समय नहीं लगे । इसलिए लयराम को वहाँ से हटाकर अब कम-से-कम दो दिनों तक घने जंगल में ही छिपाकर रखना होगा । यदि यह भी सम्भव नहीं हुआ तो दधि ने उसका भी उपाय कर लिया था । पत्र में उसने यह भी लिखा था कि यदि लयराम को छिपाया नहीं जा सका तो नाविक के साथ उसकी भी हत्या कर डालने के सिवाय और कोई उपाय नहीं रह जायगा । दधि जैसा दयालु व्यक्ति भी, जब ऐसा निर्णय ले सकता है तो इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि वहाँ की स्थिति कितनी गम्भीर हो चुकी है । लयराम के काम से सबको आघात लगा है। वह इस योजना की सारी बातें जानता है । शइकीया से मिलते ही वह भण्डाफोड़ कर देगा । तब रेलगाड़ी को
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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