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________________ नहीं दूंगी, तुम्हें अपने आँचल में छिपाकर रखूगी। तुम एकदम नादान बच्चे की तरह हो, तुम्हारा बचपना अब भी नहीं गया।''नहीं, अब तुम कहीं नहीं जाओगे।" कहती हुई उसने धनपुर का हाथ अपने हाथ में ले लिया। "गोसाईंजी भी तुम्हें मुझसे अलग नहीं कर सकते। मैं तुम्हें छिपाकर रखूगी : सबसे अलग-सबसे धनपुर ने अपना हाथ तो नहीं छुड़ाया लेकिन इतना ही कह सका : "सुभद्रा से एक बार मिल लेता, उसे एक बार गले लगा लेता तो..." वह अपनी बात पूरी नहीं कर सका, भीतर ही भीतर तड़पकर रह गया । "उसे बुलाकर लाने का समय भी तो नहीं।" डिमि ने दिलासा देते हुए कहा, "लेकिन तुम चिन्ता मत करो। तुम जैसे ही वापस आओगे, सुभद्रा तुम्हारे सामने होगी।" धनपुर तनिक सहज होता हुआ बोला, "तुमने मेरे दिल की बात को समझ लिया । तुम्हारे हृदय में औरत की भावना जो है । लेकिन तुमने शायद नहीं देखा, अभी-अभी जब सुभद्रा की बात निकली थी तो सब-के-सब कैसे गम्भीर हो गये। मुझे तो शक हो चला है।" डिमि को धनपुर पर तरस आ गया : "बेचारा..." उसने कहा : "कैसी बातें कर रहे हो ! मैं मर गयी हूँ क्या ? मेरी बातें भूल गये?" डिमि उसका हाथ दबाकर उसे अपना प्यार जताने लगी। धनपुर उसकी बातें सुनकर कुछ हैरान था । वह शायद अपने आपको संभाल नहीं पाया। कहने लगा : "तुम दोनों के चेहरे-मोहरे एक समान हैं। फिर भी, तुम मेरी नहीं, डिलि की हो । हालाँकि मैं तुम्हारा प्यार एक पल के लिए भी नहीं भूल पाया, भूल भी नहीं सकूँगा । मैं नहीं जानता, मुझे सुभद्रा के बारे में कोई ख़बर मिलेगी भी या नहीं । अगर उससे तुम्हारी भेंट हो जाये तो तुम मेरे सपने के बारे में सब कुछ बता देना, भूलना नहीं।" "नहीं, नहीं । तुम स्वयं ही मिल सकोगे।" कहने के साथ ही डिमि की सिसकियाँ बढ़ती गयीं। धनपुर चुप हो गया। कहे भी तो क्या ? थोड़ी देर बाद डिमि ही बोली : "मैं सहन नहीं कर पा रही हूँ। तुम अपने को बलि का बकरा क्यों मान रहे हो? तुम मेरे भी तो हो, मेरे इस हृदय के टुकड़े।" धनपुर तब भी कुछ बोला नहीं । उसे लगा कि देर हो रही है। उसने रास्ते की ओर नज़रें दौड़ायीं । और फिर खड़ा हो गया । डिमि तव भी बैठी ही रही । धनपुर ने उसे हाथ पकड़कर उठाते हुए कहा "डिमि ! तुम मेरी साथी हो। इससे अधिक और कुछ होने की वात नहीं मृत्युंजय / 113
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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