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________________ सीख सकी है। 'विजयी विश्व तिरंगा प्यारा' गीत भी उसे आता है। गीत सिखाने के लिए मैं एक शिक्षक की व्यवस्था कर दूंगा। वह गीत सीखेगी। "हाँ, वह बातचीत करेगी। तब तक उसके भीतर बना मिलिटरी का भय भी तो निकल जायेगा । तब वह फुलवारी में खिले फूलों के बारे में बातें करेगी : किस पौधे में सबसे अधिक मनभावने फूल खिले हैं, यह बात वह मुझे वहीं बतायेगी। मैं सुनता जाऊँगा, फूलों की बातें सुन-सुनकर मैं विभोर हो जाऊँगा। उसके बाद !... उसके बाद वह सिनेमा देखने या फिर गुवाहाटी जाकर घूमने को कहेगी । गुवाहाटी जाने पर रुकेगी कहाँ, इस विषय में मुझसे जानना चाहेगी। मैं बताऊँगा कि वहाँ हम डॉक्टर बरुवा के घर पर रुकेंगे। डॉक्टर बरुवा मुझे बहुत मानते हैं। यदि सुभद्रा को तब भी बीमारी रही तो उसका इलाज भी मैं डॉक्टर से कराऊँगा। वहाँ से लौटते समय इधर के ही स्टेशन पर उतर तुम्हारे यहाँ भी आऊँगा । तब तक तो सड़कें भी चौड़ी हो चुकी होंगी। मोटर-गाड़ियां भी होंगी।" "क्यों न होंगी?" आँखें मूंदे हुए ही डिमि ने कहा। धनपुर ने डिमि की ओर निहारा और बोला : "रोती क्यों हो डिमि ? होंगी, सभी बातें होंगी; तुम्हारा भी हित होगा और मेरा भी होगा, सुभद्रा का भी होगा, सबका हित होगा। अगर हित नहीं होगा तो केवल उनका" "किनका?" डिमि भर्राई आवाज़ में बोली। "जो हमारे विरुद्ध हैं। नहीं-नहीं, जो स्वराज्य के विरुद्ध हैं।" धनपुर रुक गया। "जो इसके विरुद्ध नहीं हैं पर जिनकी इसमें विशेष रुचि भी नहीं हैं, उन्हें भी आदमी बनकर रहना होगा। हाँ, आदमी बनकर ।" डिमि सुबकने लगी। धनपुर स्तब्ध-सा हो गया। कुछ समझ नहीं सका । क्या हुआ उसे ? "क्या हआ डिमि ? क्यों रोती हो ? डिमि ! डिमि !! डिमि !!!" इस बार डिमि फफक-फफककर रो पड़ी। धनपुर अपने को असहाय महसूस करने लगा। उसने उसे बहलाते हुए कहा : "डिमि, रोती क्यों हो ? अभी तो तुझसे और भी बातें करनी हैं। मैं सुभद्रा को कितना प्रेम करूंगा। उसके लिए क्या-कुछ लाऊँगा, उसे कैसे रिझाऊँगा, कैसे कपड़े पहनाऊँगा, कौन-कौन-से गहने लाकर दूंगा-किस तरह उसे ख द ही अपने हाथों सजाऊंगा..." डिमि ने अपना सिर उठाया। आँचल से अपने आँसुओं को पोंछती रही। धनपुर चुप हो गया था। डिमि ने सिसकते हुए कहा : "इन बातों से मेरा दिल टुकड़े-टुकड़े हो गया, धनपुर ! मैं तुम्हें कहीं जाने 112 | मृत्युंजय
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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