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________________ बिता देता हूँ | तब वह कहती है कि बढ़िया ऊन का एक स्वेटर बुन दूंगी, किन्तु बुनने के लिए उसे समय ही कहाँ मिलता है ! फिर उसके पेट में दर्द तो अब भी होता ही रहता है ।" "दर्द होता है ?" डिभि का कौतूहल बढ़ गया । "वह बीमार रहती है क्या ?" “हाँ ।" डॉक्टर ने कहा है कि यदि दर्द इसी तरह बना रहा तो उसे सन्तान होने की आशा नहीं । उसकी बच्चेदानी को गहरा धक्का पहुँचा है ।" "तब तो उससे ब्याह न करना ही अच्छा रहेगा ।" डिमि की मुद्रा में गम्भीरता झलक आयी थी । 1 "नहीं, मेरा वादा इधर-उधर नहीं हो सकता । और यह कैसे कह सकती हो कि सन्तान होगी ही नहीं। डॉक्टर को अभी केवल सन्देह है, उसने निश्चयपूर्वक कुछ नहीं कहा है । फिर उस घर में मैंने सन्तान के लिए कमरे की भी तो व्यवस्था नहीं की है। हम जब तक जीवित रहेंगे तब तक वहाँ रहेंगे, रहेंगे यानी कि सुभद्रा भी साथ रहेगी। सुभद्रा अधिक घूम भी नहीं सकती। बीमार देह को वह कितना खींचेगी, लेकिन स्वराज्य मिलने पर मुझे तो घूमना ही होगा। नगर में रहकर क्या करूँगा ! गाँव ही तो सच्ची कर्म भूमि है । मुझे तो तब भी काम करना होगा । यदि मर गया तो बात और है, तब मेरे बदले में ये लोग काम करेंगे । ... इन दो दिनों में रूपनारायण साथ अनेक बातें हुई । हमारे गाँवों में भूमि - हनों की संख्या अधिक है। उन्हें जमीन देनी होगी । केवल ज़मीन देने से ही नहीं होगा, कल-कारखाने भी लगाने पड़ेंगे । जरूरत पड़ी तो ज़मींदारों, पूँजीपतियों की व्यवस्था को समाप्त करना होगा । सभी बच्चों को शिक्षा की सुविधा प्रदान करने की बात तो है ही । अच्छा, इन सब बातों को छोड़ो। मैं तो ज्यादातर गाँवों में ही रहूँगा । हमारे मरने के बाद वह घर भी अतिथिघर बन जायेगा । अपने गाँववालों को नगर में आने पर विदेशियों की तरह रहना पड़ता है । लोग वहाँ पूरे अधिकार से रह सकेंगे, एकदम अपने घर की तरह रह सकेंगे ।" धनपुर कहता जा रहा था : I "मैं सुभद्रा को कलङ के किनारे घुमाने के लिए ले जाया करूंगा । कलङ के किनारे एजार के फूल खिलेंगे । और जब नदी में पानी कम हो जायेगा तब हम उसी के किनारे बैठेंगे । वहाँ हमारे सिर के ऊपर होगा इसी तरह का खिला हुआ चाँद, वहाँ भी होगा ऐसा ही एकान्त और तब मैं सुभद्रा को पुरानी बातें सुनाऊँगा । हमारे मन के भण्डार में अनेक बातें भरी होंगी। उन्हें कहकर भी पूरी नहीं कर पाऊँगा । बीच-बीच में सींगा भी बजाऊँगा । उसके बन्द होते ही सुभद्रा का मुंह भी खुल पड़ेगा । सींगे का सुर उसके भीतर में पैठ जायेगा - मानो मधुमक्खी के छत्ते में घुसकर उससे रस खींच लायेगा । उसे गाना-बजाना तो आता नहीं । हाँ सोहर ओर मण्डप के गीत गा लेती है । आश्रम में रहकर इधर गांधी- प्रार्थना भी मृत्युंजय / 111.
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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