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________________ निपटा देती थीं। उन्होंने अपनी मीठी बातों से और स्वभाव से सबका मन मोह लिया था । हमारे गाँव की औरतें तो अभी भी उनका नाम लेती रहती हैं ।" कॅली दीदी की प्रशंसा सुनकर धनपुर सचमुच बहुत ख ुश हुआ। “दीदी की तरह अगर सी औरतें भी रोहा अंचल में होतीं तो वहाँ के लोगों को बनियों से कपड़े ख़रीदने की ज़रूरत नहीं पड़ती ।" धनपुर ने फिर याद दिलाया: "मैं क्या कह रहा था ?" 1 "हाँ, वह बात तो बीच में ही रह गयी । लेकिन तुमने फुकन बेजबरुवा या छोटे साहब जैसे शहरी बाबुओं के नाम लिये थे, उन्हें तो मैं जानती भी नहीं । और फिर उन्हें जानने की ज़रूरत भी क्या है ? तुम अपने घर के बारे में बता रहे थे न ।" "हाँ, याद आया ।" धनपुर ने अपनी टाँगें घास पर पसार दीं। शायद उसे ous भी लग रही थी । उसने कमीज़ का ऊपरी बटन बन्द कर लिया । fsfम ने टोका : " तुमने कोई गर्म स्वेटर नहीं डाल रखा ? है नहीं क्या ?" "स्वेटर लेकर कहाँ रखता उसे ? इस अण्डी की चादर से ही काम चल जाता है ।" धनपुर ने सफ़ाई दी । डिमि की सहानुभूति उमड़ आयी । उसे धनपुर पर बड़ा तरस आया । बोली : "सुनो, मेरे पास गारो कुरता है, बुना हुआ । वह मैं तुम्हें दे दूँगी । चादर लेकर जाओगे तो ऐसे काम में दिक्कत होगी । भागते-दौड़ते हुए इसके काँटों में फँसने का डर है।" fsfम की बातें सुनकर धनपुर का गला भर आया । वह बोला : "कॅली दीदी के अलावा बस तुम्हीं हो जो मुझ पर इतना स्नेह रखती हो । सुभद्रा इस योग्य नहीं कि वह अपना प्यार जता सके। अब भी, उसके सपने में वही वहशी फ़ौजी आ जाते हैं और तब वह चौंक उठती है। जब-जब उसका मन शान्त रहता है तो वह मुझसे बहुत सारी बातें करती है । उस समय उसकी बातें सुनकर बड़ा आश्चर्य होता है ।" "क्या कहती है वह ? कहो न !” डिमि ने आग्रहपूर्वक पूछा । "कहती हैं कि तुम यदि इसी तरह मैले कुचले बने रहोगे तो मैं बुरा मानूंगी । काम में भिड़े रहने पर कभी-कभी मैं दो-तीन दिनों तक सोना, नहाना, खाना, पहनना सब कुछ भूल बैठता हूँ । आश्रम में लौटने पर मुझे अस्त-व्यस्त और - थकान से चूर देखते ही वह रो-रोकर अधीर हो उठती है। कभी-कभार तो एकाध जून उपवास भी कर जाती है। और तब मैं एक-दो दिन साफ़-सुथरे ढंग से जरा तेल-वेल लगाकर रहता हूँ। और सारी रात उसके पास ही बैठकर बातचीत में 110 / मृत्युंजय
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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