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__ "पूरब की ओर एक अतिथिशाला बनवाऊँगा । वह चार परिवारों के टिकने लायक होगी। उसमें आधुनिक ढंग के शौचालय, पानी के नल और बिजली से चलने वाले पंखे होंगे । गाँव तथा दूर-दराज से आनेवाले शहीदों के सगे-सम्बन्धी वहाँ टिक सकेंगे। रसोईघर सबके लिए एक ही रहेगा। वहाँ जात-पात का भेदभाव नहीं चलेगा। सब के लिए एक ही हाँड़ी चढ़ेगी। हाँ, कोई नहीं खाना चाहे तो उन पर दबाव नहीं डाला जायेगा। गोष्ठी, सभा, नाच, भाओना के लिए अतिथिशाला के सामने ही एक रंगशाला रहेगी। उसका नमूना रंगपुर की तरह का ही होगा, बनावट में बिल्कुल नयापन होगा। उसकी दीवालों पर भी कुछ चित्रांकन कराने की बात सोचता हूँ। शहीदों के चित्र तो रहेंगे ही, महान लेखकों और वैज्ञानिकों की तस्वीरें भी रहेंगी। वहाँ फुकन बेजवरुवा महीने में एक-दो बार नाटक भी किया करेंगे। जिन दिनों नाटक नहीं होगा उन दिनों सभी वहाँ मिल-बैठकर बड़ी-बड़ी बातों पर विचार करेंगे।" __"उस स्वर्गपुरी में तुम और सुभद्रा रहोगे या नहीं?" डिमि ने बीच में ही टोक दिया। "मेरा मतलब है, तुम दोनों के लिए अलग से घर होगा या नहीं?
''बैठकी, सोने का कमरा, रसोईघर वगैरह..." और फिर जवाब का इंतजार किये बिना उसने छत्छत् का एक टुकड़ा फिर जला दिया। महमह करती ख शबू चारों ओर फैल गयी। धनपुर का सपना भी महक उठा।
"वाह, रहेगा क्यों नहीं" धनपुर ताज़ा दम होकर फिर शुरू हो गया। "मैंने बताया न, एक छोटा-सा घर होगा। छोटा-लेकिन पक्का। बैठकखाने की लम्बाई आठ हाथ और चौड़ाई चार हाथ होगी। सोने का कमरा दस हाथ लम्बा
और पाँच हाथ चौड़ा होगा । उसके साथ ही बाथरूम लगा होगा। बग़ल में ही कॅली दीदी के लिए एक कमरा रहेगा। बूढ़ी हो जाने पर वह आश्रम में नहीं रह पायेंगी। फिर आश्रम में पड़े रहने की ज़रूरत भी क्या है ? उन्होंने कितना त्याग किया है, और कितना कष्ट उठाया हैं ! मैं स्वराज्य मिलते ही उन्हें अपने यहाँ ले आऊँगा और अच्छी तरह रखूगा। वह किसी धनी के यहाँ नहीं, हम ग़रीब लोगों के बोच रहेंगी । वहाँ से पूरे इलाके में संगठन का काम करने की सहूलियत भी होगी।"
"यह कॅली दीदी कौन हैं ?" डिमि ने जानना चाहा ।
"अरे, तुम उन्हें नहीं जानती? बीच-बीच में यहाँ आती तो रहती है। पिछले दिनों 'चरखा संघ' के गठन के लिए यहाँ आयी थी।"
डिनि को याद हो आया : "अरे हाँ, आयी थीं। वह तो बहुत ही अच्छी महिला हैं। कताई-बुनाई में बेजोड़। मेरे चरखे पर ही तो सूत काता था उन्होंने। इतनी तेज़ और महीन सूत काता था कि देखकर हम सब दंग रह गयी थीं। अगर हम एक पूनी पाँच मिनिट में कातें तो वह इतने ही समय में दो पूनियाँ
मृत्युंजय | 109