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विदा होते समय लौटने का वादा कर आया था लेकिन अब लगता है कि लौटना मुश्किल होगा। यमराज के यहाँ जाऊँ या न जाऊँ, लेकिन विवाह-वेदी पर बैठना शायद सम्भव नहीं होगा । लौटती बार एक दिन तुम्हारे यहाँ रुकूँगा। इधर से नदी के रास्ते ही मायङ जाऊँगा। कुछ दिन वहीं छिपकर रहने की बात सोची है। पर ये सब बाद की बातें हैं। देखो-यह सब करने के लिए समय मिलता है या नहीं, अभी कुछ कह नहीं सकता। लगता है मायड में भी दमन-चक्र शुरू हो गया है। इसलिए शायद ही सुभद्रा अब मुझे जीवित देख पाये। डिमि, तू उसे धैर्य धारण करने को कहना । 'नहीं-नहीं, रहने दो, कुछ नहीं कहना ही ठीक रहेगा।"
धनपुर चुप हो गया। किन्तु किसी अदृश्य लोक की सैर करता हुआ फिर बोला :
। "हमने नगांव में कलङ नदी के किनारे एक घर बनाने की बात सोची है । ज़मीन भी देख ली है। अमला पट्टी के पार सड़क की बगल में ही कलङ-तट से एक फ़ांग दूर रायसाहब की ज़मीन है। रायसाहब मान गये तो थोड़ी जमीन उन्हीं से लेकर एक घर बनाऊंगा। तरह-तरह के फल-फूल के पौधे लगाऊँगा । एक बड़ा-सा पोखर खुदवाकर मछली पालंगा। मछली पालने का शौक़ बचपन से ही रहा है। रोहू मछली के ही बीज अधिक डालूंगा। जोंगालबलहुं गढ़ के पास वाली झील में किस्म-किस्म की मछलियां हैं। छोटी-मोटी एक फ़िशरी बनवाने की भी सोचता हूँ । नगाँव के हमारे भुइयाँ सर अभी जेल में हैं। उन्होंने ही मुझे यह राय दी है। घर के आगे एक फुलवारी लगाऊँगा। वह होगी तुम लोगों के छोटे साहब की फुलवारी जैसी ही। छोटे साहब, अरे वही गुणा भिराम बरुवा, नगाँववालों के बीच वे ही छोटे साहब के नाम से प्रसिद्ध हैं। उनकी फुलवारी की देखभाल करते हैं हमारे ठेकेदार फुकनजी। पत्तों की ओट में छिपे कटहल जैसे मधुर फल की तरह ही हैं वे। उनके यहाँ एक माली है । पच्छिम से आया है। उसी को बुलाकर तरह-तरह के फूल लगवाऊँगा। यहाँ के पहाड़ों पर कपो फल तो होते ही हैं। उन्हें तो लगाऊँगा ही; साथ-साथ बीच में एक थल-पद्म भी लगवाऊँगा। उसी के चारों ओर कई गोलाकार क्यारियां होंगी। पहली क्यारी में गुलाब, दूसरी में सूर्यमुखी, तीसरी में रंग-बिरंगे फूल होंगे। दाहिनी ओर एक छोटी पोखरी खुदवा उसमें लाल कमल लगवाऊँगा। कुमुदिनी भी रहेगी। पोखरी के ही एक किनारे पर पक्की छतरी में कलियाबर के मूर्तिकार द्वारा बनायी गयी महात्मा गाँधी की एक काष्ठ-प्रतिमा स्थ.पित कराऊँगा । घर के पिछवाड़े में अनेक प्रकार के फलों के पौधे होंगे-नासपाती, अमरूद, आम, अनानास केले तो रहेंगे ही।" ___ बातें कहते-कहते धनपुर अपने को भूल गया था। थोड़ी देर रुकने के बाद डिमि की ओर देखते हुए वह हंस पड़ा। कहने लगा :
108 / मृत्युंजय
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