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"हाँ, करूंगा। लेकिन पहले यह काम तो पूरा हो जाने दो।" कहते हुए धनपुर का अन्तर्मन झंकृत हो उठा। उसे लगा उसका हृदय भी एक सींगा ही है, जो गूंज उठा है ।
"आख़िर कौन-सा काम आ पड़ा है कि इतना छुप-छिपाकर किया जा रहा है । मैं भी तो सुनूं !” डिमि के स्वर में जिज्ञासा थी ।
"हाँ," धनपुर ने इतना ही कहा। लेकिन उसके हृदय में कोई अज्ञात भय उसे सावधान कर रहा था । डिमि की आँखों के सामने अँधेरा-सा छा गया। थोड़ी देर के बाद बोली :
"मैं तो कुछ भी नहीं समझ पाती । हाँ, दैपारा के गोसाईजी फ़ौजियों की गश्त की बात कर रहे थे । तुम सब उनसे लड़ाई तो नहीं ठान रहे ?"
"हाँ," धनपुर ने आकाश की ओर ताकते हुए स्वीकार किया । उसे लगा, जैसे सींगे की आवाज़ गगन को भेद चुकी थी ।
fistfa की दृष्टि भी आकाश में जा लगी थी । उसे लगा, दूर मादल की थाप पर चाँदनी मानो अब भी नाच रही है । वह बुझे हुए स्वर में बोली :
"तब इतनी जल्दी ब्याह हो पाना सम्भव कहाँ ? स्वराज्य की लड़ाई तो बहुत ही लम्बी खिंचेगी ।"
"आते समय सुभद्रा भी बहुत रो रही थी । वह बहुत ही भयभीत थी। मुझे भी उसका रोना-धोना बहुत अच्छा न लगा ।" धनपुर इससे आगे कुछ न बता
पाया ।
"बताते क्यों नहीं ? मुझसे कुछ छुपाते हुए तुम्हें बड़ा सुख मिलता होगा | हैन ! क्या मैं इतनी परायी हो गयी ?” डिमि की आवाज़ टूट रही थी । धनपुर ने डिमि के चेहरे की तरफ़ देखा । डिमि के गोल-मटोल चेहरे पर उसकी आँखों से आकाशी गंगा का पानी छलक रहा था । डिमि के मायके से आकाश गंगा अधिक दूर नहीं । आकाशी गंगा झरने का ही दूसरा नाम है और गाँव जिले में इसकी प्रमुखता है । कल रूपनारायण के साथ घूमते हुए ऐसे ही एक झरने के किनारे वह रुक गया था और दोनों में कितनी ही बातें होती रहीं ।
वह रूपनारायण के बारे में सोचने लगा : रूपनारायण है युवक ही, लेकिन अगाध पाण्डित्य है उसमें । धर्मशास्त्र, राजनीति, समाजशास्त्र - सभी विषयों का जानकार। यही नहीं, छोटी-मोटी बातों से लेकर परमतत्त्व और अध्यात्म जैसी बातों पर भी वह पूरे अधिकार से बात कर सकता है। इतना होते हुए भी वह कर्म को ही धर्म, ज्ञान और मुक्ति मानता है । कर्म ही वास्तविक मुक्ति है उसके लिए । उसकी संगति पाकर धनपुर का मनोबल और भी दृढ़ हुआ है । धनपुर अनायास ही उसकी तुलना डिमि से करने लगा, हालाँकि इस बेतुकी तुलना पर उसे बाद में स्वयं हँसी आ गयी थी । डिमि रूपनारायण की तुलना में वह कुछ भी नहीं है ।
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102 / मृत्युंजय