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जायेगा ।"
fsfम ने देखा, धनपुर अपना खाना तक भूल गया है। उसे उस पर तरस भी आया । गहरी उसाँस के साथ बोली वह :
"स्वराज्य मिलने के बाद क्या ब्राह्मण, भक्त, गारो, कछारी, अमीर-गरीब, सूबेदार और महाजन नहीं रहेंगे ? तुम देखना, सब कुछ बना रहेगा। वे अब भी हैं और तब भी रहेंगे। तुम यह सब सोचकर बेकार ही घुटे जा रहे हो । अभी जो काम सामने है, उसे जी-जान से पूरा करो। और उसके बाद सुभद्रा से ब्याह कर लो । फिर देखना, बाधाएँ भर आयें तो करने को ही क्या रह जाता है !"
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" फिर भी, बिना सोचे-विचारे कुछ नहीं किया जा सकता ! तब तो इसमें वह बात भी शामिल हो जायेगी, जिसके अनुसार तुमसे ब्याह करना भी तो लगभग तय था । पता नहीं, तुम्हें अब वह सब याद है या नहीं ।" धनपुर ने हँसते हुए कहा और केला ख़त्म करने के बाद हाथ पोंछने लगा ।
"हाँ, याद है ।" कहती हुई डिमि का मन कहीं दूर चौकड़ी भरने लगा । "अब उन बीती बातों के बारे में जानने-सुनने से क्या लाभ !"
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" तभी सोचता था कि तुम्हें गारो और अपने को असमिया समझने की धारणाओं का समाप्त हो जाना ही अच्छा है ।" धनपुर ने खेद व्यक्त करते हुए कहना शुरू किया, "मैं शुरू से ही पुरानी और सड़ी-गली रूढ़ियों का विरोधी रहा हूँ । सुभद्रा भी मेरे जीवन में कुछ इस तरह आयी। वह सबकी सहानुभूति खो चुकी थी । उसे देखते ही लोग भाग खड़े होते दूसरों की बातें तो जाने दो, यहाँ तक कि वॉलण्टियर भी उससे मुँह चुराते । उसकी देह जूठी जो हो गयी थी, इसलिए हम लोगों ने भी उसे दुत्कार दिया। मुझे उसका उदास चेहरा देखकर बड़ा दुख होता है । मैंने उससे साफ़ कह दिया था, 'चिन्ता मत करना, मैं तुम्हें अपनाऊँगा ।' उसे देखकर मुझे हमेशा यही लगता रहा कि वह सुभद्रा नहीं, डिमि है । सचमुच, वह एकदम तुम जैसी ही है । हू-ब-हू तुझ जैसी ।" धनपुर की उदासी में थोड़ी-सी ख़ ुशी घुल गयी थी ।
धनपुर की बातों ने डिमि को कहीं गहरे तक छू लिया था । लेकिन वह चिरपरिचित मुस्कराहट के साथ बोली :
"उसकी देह अपवित्र कैसे हुई ?"
धनपुर ने फ़ौजियों द्वारा ढाये गये जुल्म की सारी कहानी सुना दी और सुभद्रा का करुण प्रसंग जोड़ते हुए बोला :
"क्या यह सचमुच बुरा हुआ डिमि ? मैं पिछले कई दिनों से तुम्हारी राय जानना चाहता था ।"
"अब इसमें भला-बुरा क्या है, क्या होगा इसे सोचकर ? जब उसको अपना ही चुके हो तो जितनी जल्द हो उससे ब्याह कर लो।"
मृत्युंजय | 10: